________________ परमेष्ठि-वन्दना नमस्कार हो अरिहन्तों को, राग-द्वेष रिपु-संहारी / नमस्कार हो श्री सिद्धों को, अजर अमर नित अविकारी॥ नमस्कार हो आचार्यों को, संघ-शिरोमणि आचारी / नमस्कार हो उपाध्यायों को, अक्षय श्रुतनिधि के धारी॥ * नमस्कार हो साधु सभी को, जग में जग-ममता मारी / त्याग दिये वैराग्य-भाव से, भोग-भाव सब संसारी // पांच पदों को नमस्कार यह, नष्ट करे कलिमल भारी / मंगल-मूल अखिल मंगलमय, पाप-भीरु जनता तारी // -उपाध्याय श्री अमरमुनि मुद्रक रवि ऑफसेट प्रिण्टर्स एण्ड पब्लिशर्स (प्रा.) लि. 5/166/1, लता कुंज, पुराना आगरा-मथुरा मार्ग, आगरा-२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.o