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________________ चेतन मस्ती कुछ लोग भंग को 'सिद्धि' नाम से पुकारते हैं, उनका कहना है कि भंग के पीने पर मस्ती आ जाती है, और वह मस्ती हमें परमात्म भाव की आनन्दानुभूति करा देती है । वास्तव में यह सुषुप्तावस्था या नशे की बेहोशी सच्ची मस्ती नहीं है, मस्ती वह है, जो छाए तो ऐसी कि फिर उतरे ही नहीं । हमें मस्ती चाहिए किन्तु वह मस्ती भंग, शराब या किसी व्यामोहक तत्त्व की नहीं चाहिए । मस्ती वह चाहिए जिसमें अपने ही अन्तर में डूबकर लीन हो जाए, निज स्वरूप की मस्ती चाहिए। जिसमें अक्षय आनन्द की सतत अनुभूति हो । हमें वही चेतन मस्ती चाहिए, जीवित मस्ती चाहिए, जड़ सुषुप्त मुर्दा मस्ती नहीं चाहिए । समवाद भारत के प्राचीन दर्शनों और विशेष रूप से योगदर्शन में 'यम' का वर्णन आता है। जैन साधना-पद्धति में उससे पहले 'सम शब्द का प्रयोग किया गया है । 'यम' की ध्वनि वस्तु-त्याग की ओर प्रेरित करती है, किन्तु 'सम' का नाद मन की पवित्रता और शीतलता को स्फुरित करता है। जैन साधना 'यमवाद' की साधना नहीं, किन्तु 'सम' - 'सम्यक्वाद' की साधना है। उसने त्याग से पहले त्याग के प्रति सम्यक् बुद्धि (सम्यक् दर्शन) को माना है। प्राचीन आचार्य 'योग निग्रहो गुप्तिः' कहते थे, किन्तु आचार्य उमास्वति ने इस परिभाषा सूत्र को यों कर दिया— - 'सम्यक् योग - निग्रहः – गुप्तिः - जो ठीक विचार और विवेक पूर्वक योग का निग्रह किया जाता है, वही गुप्ति है। योग निग्रह का महत्व भी तभी है, जब उसमें विवेक और समता हो, नहीं तो वह मात्र देह-दण्ड होता है I अहिंसा की सम्पूर्णता एक बात मन में आती है कि अहिंसा और दया की जो बातें और संदेश दिए जाते हैं, वे जो जैन-लोग हजारों वर्षों से सुनते आ रहे हैं, और दया और अहिंसा अमर डायरी 150 Jain Education International For Private & Personal Use Only 'www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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