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का कार्य कर भी रहे हैं। किन्तु बकरों और कबूतरों आदि को मारने वालों से छुड़ाने भर से ही तो अहिंसा की सम्पूर्णता नहीं हो जाती। यह कार्य ठीक है, किन्तु यहीं तक उलझे रहना अच्छा नहीं है। जब तक मारने वाले की वृत्ति नहीं बदलती, तब तक मरने वाले तो उनके हाथ लगते ही रहेंगे, एक से छुड़ा दिया तो दूसरा खड़ा हो जाएगा । अहिंसा की सम्पूर्णता उसमें है कि मारने की वृत्ति बदल दी जाय । इस सम्बन्ध में मारवाड़ में जो खटीक जाति को अहिंसा और दया का सन्देश देकर उन्हें अहिंसक समाज-रचना के अंग बनाए जा रहे हैं, वह बहुत महत्वपूर्ण कार्य है । वास्तव में मारने की वृत्ति खत्म हुए बिना अहिंसा का विस्तार कठिन है । हिंसक वृत्त को मिटाना अहिंसा का सबसे श्रेष्ठ प्रचार है।
आग बुझाने वाले ___ एक बार मुझे एक सर्वधर्म-सम्मेलन में भाग लेने के लिए निमन्त्रित किया गया। कार्यकर्ताओं ने निर्णायक के आसन पर भी मुझे बिठा दिया। मैंने वहाँ पर देखा कि धर्म-गुरुओं का अच्छा-खासा बना हुआ था वह सम्मेलन । उनमें से प्रत्येक व्यक्ति यह कहकर कि---हम यह कर सकते हैं, हम वह कर सकते हैं, चुप होता गया। सभा का समारोप करते हुए मैंने कहा-किसी व्यक्ति का मकान जल रहा है और कई टोलियाँ वहाँ पर आजायें, एक टोली कहे यह आग हम बुझा सकते हैं और इस पर दूसरी कहे-नहीं, यह आग बुझाने की सबसे अच्छी तरकीब हमारे पास है, और सभी टोलियाँ इसी प्रकार कहती हुई परस्पर लड़ पड़ें और आग न बुझाएँ, इस तरह उस बेचारे का घर तो राख का ढेर बन जाएगा। ___ क्या आज भारत ही नहीं, किन्तु संसार भर के धार्मिकों के बीच कुछ ऐसा ही तो नहीं हो रहा है? हर धार्मिक अपने धर्म-देवता और धर्म-ग्रन्थों की मात्र प्रशस्ति करके ही संतुष्ट नहीं हो जाता है, अपितु दूसरे के धर्म देवता और धर्म-ग्रन्थों के प्रति घृणा और गलत फहमी. भी फैलाने लग जाता है । इस प्रकार आग बुझाने की बात करने वाले आग लगाने वाले बन जाते हैं, और उनकी लगाई आग में संसार तबाह हो रहा है !
अमर डायरी
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