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________________ वह प्रगति-दुर्गति है विश्व इतिहास के पन्नों पर ऐसी धूमिल तस्वीरें आज भी स्पष्ट दीख रही हैं जो अपनी विचारहीनता के कारण जीवन की अँधेरी गलियों में ठोकरें खाते फिरे हैं । वे यही समझते रहे हैं कि हम प्रगति पथ पर बढ़ रहे हैं, किन्तु वास्तव में उनको न मार्ग का ज्ञान था, न मंजिल का । इसलिए सिर्फ अपने घेरे के इर्द-गिर्द ही उनका यह चंक्रमण होता रहा । उन विचारहीन प्रगतिवादियों की स्थिति तेली के उस बैल के समान थी, जो दिन भर धानी के चारों ओर चक्कर लगाता रहा- जब शाम हुई, थक कर चूर-चूर हो गया तो सोचा आज २५-५० मील की मंजिल तय कर ली है, मगर जब आँखों पर से पट्टी हटाई गई तो देखा कि वह तो मालिक के उसी घर और उसी आँगन में खड़ा है जहाँ सुबह यात्रा शुरू करने के लिए खड़ा हुआ था । "ज्यों तेली के बैल को घर की कोस पचास " यह दुःखद स्थिति आज भी हमारे समक्ष चल रही है और बहुत से प्रगतिवादी इसी चक्कर में फँसे हुए हैं। वे बढ़ना चाहते हैं किन्तु सही ज्ञान न होने से भटक जाते हैं । उनकी प्रगति — दुर्गति का कारण बन जाती है । इसीलिए आज से हजारों वर्ष पहले भगवान् महावीर ने यह घोषित किया था— पढमं नाणं तओ दया- पहले मन को ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करो, तो तुम्हारा मार्ग प्रकाशमय बनेगा और किनारा निकट आता दिखाई देगा । विचार फूल हो, चट्टान नहीं यह सही है कि विचारों की विषमता रहती है, विचित्रता भी रहती है, किन्तु मात्र विचारों में ही विषमता रहती हो तो कोई खतरा नहीं, वह पुष्प की तरह हल्की-फुल्की भारहीन सौरभ से मदमाती हो ! किन्तु विचारों का वैषम्य जब 'वाद' का चोगा पहन कर जम जाता है और चट्टान की तरह ठोस बन जाता है तो वह टकराहट पैदा करता है, और राहगीरों के सिर फुड़वाने भी लग जाता है। अतः विचारों की द्वैधता को चट्टानों की तरह अलग-अलग खड़ा न करके रंग-बिरंगे फूलों को सजाना चाहिए, ताकि उनसे संसार को उल्लास, स्फूर्ति और आनन्द मिलता रहे । अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only 149 www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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