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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि दासों का एक ऐसा वर्ग भी था जो स्वामी के परिवार का अंग नहीं था और इस कोटि के दास बेगार (विष्टि) के लिए बाध्य किये जाते थे। इस सन्दर्भ में डॉ० आर० एस० शर्मा का मत है कि दास और चर्मकार से बेगार लेने की प्रथा मौर्य काल से ही चली आ रही थी और आगे चलकर बेगार ही वैश्य तथा शुद्र की पृथक्ता का मापदण्ड बन गय। । प्राचीन समय में बेगार-प्रथा का प्रचलन था । । ऐसा प्रतीत होता है कि जैन पुराणों के रचनाकाल में दासों की स्थिति में सुधार लाने की प्रवृत्ति प्रारम्भ हो चुकी थी, जिनके प्रमाण इन ग्रन्थों में अनेकत्र प्राप्त होते हैं । यह सुधारवादी दृष्टिकोण व्यवहार में कहाँ तक यथार्थ सिद्ध हुआ, यह कहना कठिन है। किन्तु इसमें संदेह नहीं है कि ये पौराणिक विचार हमें रोमन संस्कृति के उस स्तर का स्मरण दिलाते हैं, जबकि दासों की दशा को उन्नत करने का प्रयास किया गया था। पूर्व-मध्यकाल के साक्ष्यों की समीक्षा करने के उपरान्त डॉ० यादव इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि दास-परिचारकों को वस्त्र-भोजनादि की समुचित व्यवस्था करना स्वामी का कर्तव्य था ।" ___ आलोचित जैन पुराण बारम्बार सेवावृत्ति की निन्दा करते हैं। पद्म पुराण में इसे दुःख और निन्दा का विषय बताया गया है। उक्त ग्रन्थ के अनुसार मनुष्य कुत्ते का जीवन व्यतीत करे, किन्तु सेवक की वृत्ति अपनाना उसके लिए उचित नहीं है। क्योंकि ऐसा करने से उसकी आत्मा निरन्तर दुःख का अनुभव करती है। इसी पुराण में प्रसंगान्तर से वर्णित है कि मनुष्य को भृत्य का जीवन इसलिए नहीं स्वीकार १. विष्टिदण्डकराणां च निबन्धो राजसाद्भवेत् । महा १६।१६८ २. आर० एस० शर्मा-शूद्राज इन ऐशेण्ट इण्डिया, वाराणसी, १६५८, पृ० २८१-२८२ ३. ज्ञानेन्द्र राय-फोर्सड लेबर इन ऐशेण्ट ऐण्ड अर्ली मेडिवल इण्डिया, द इण्डियन हिस्टोरिकल रिव्यू, भाग ३, अंक १, जुलाई १६७६, पृ० १६-५२ ४. अस्टेड-द कन्क्वेस्ट ऑफ सिविलीजेशन, लन्दन, १६५४, पृ० ६१५ ५. यादव-वही, पृ० ७४ ६. पद्म ६७।१४६ ७. वही ६७।१४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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