________________
सामाजिक व्यवस्था
है कि आपातकाल में ब्राह्मण कृषि कार्य सम्पन्न कर सकता है। पराशरस्मृति ( ६०० से ६०० ई० के मध्य ) ने कलियुग का वृतान्त देते हुए कृषि को ब्राह्मणों की आजीविका के अन्तर्गत सम्मिलित किया है । २ पराशरस्मृति के टीकाकार माधवाचार्य ने इसी तथ्य को स्पष्ट करते हुए वर्णन किया है कि कृषि-वृत्ति--जो कि प्रारम्भ में ब्राह्मणों के लिए आपातकालीन वृत्ति थी, कलियुग में सामान्य - वृत्ति बन चुकी थी ।
यह उल्लेखनीय है कि उक्त टीकाकार माधवाचार्य ने अपनी टीका में 'कार्येत्' शब्द का प्रयोग किया है, न कि 'कुर्यात्' ।' कार्येत् शब्द पर बल देते हुए डॉ० ब्रजनाथ सिंह यादव का कथन है कि ब्राह्मण स्वयं कृषि कार्य नहीं करता था, अपितु कृषि - कार्य शूद्रों के माध्यम से करवाता था । ऐसी स्थिति में ब्राह्मण का 'कर्षण कार्य' से सम्बन्ध स्थापित नहीं हो पाता, अपितु 'कृषि-वृत्ति' के साथ सम्बद्ध अवश्य हो जाता है ।" किन्तु कूर्म पुराण ( जो पूर्वमध्यकालीन रचना है ) से यह स्पष्ट हो जाता है कि विकल्पत: ब्राह्मण कर्षण कर सकता है । ऐसी स्थिति में जैन हरिवंश पुराण और पारम्परिक कूर्म पुराण के वर्णन में पर्याप्त समानता प्रदर्शित होती है । सम्भवतः हरिवंश पुराण ने निन्दा और गर्हणा के लिए ब्राह्मण को कृषक और हलवाहक बताया है । क्योंकि जैसाकि मनुस्मृति के उक्त वर्णन से स्पष्ट है कि हल चलाने से जीव हिंसा होती थी और हिंसा-वृत्ति जैनमत के लिए मान्य नहीं थी, ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि ब्राह्मण कृषि कार्य को शूद्रों से करवाता था, न कि स्वतः करता था ।
[ब] क्षत्रिय : जैन पुराण क्षत्रिय वर्ण के लिये प्रायः 'क्षत्र' और 'क्षत्रिय' शब्द का प्रयोग करते हैं । किन्तु इनमें कहीं-कहीं 'अयोनिज' शब्द का भी उल्लेख
१.
२.
३. बृहत्पराशर संहिता ११४
४.
५.
६.
उद्धृत - कृत्यकल्पतरु के गृहस्थकाण्ड, पृ० १६१ पराशरस्मृति, आचारकाण्ड, २०१
७.
तैः सहितो विप्रः शुश्रूषकैः शूद्रः कृषि कार्येत् ।
पराशरस्मृति पर माधवाचार्य की टीका, आचारकाण्ड २२
यादव, वही, पृ० १०
स्वयं वा कर्षणं कुर्यात्वाणिज्यं वा कुसीदकम् । आचारकाण्ड २२
उद्धृत - यादव - वही, पृ० ८०, टिप्पणी १०५
पद्म ११।२०२, हरिवंश ६।३८, महा ४४ । ३०
४३
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org