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________________ २८ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन प्रभाव पड़ता रहता है।' डॉ० पन्थारी नाथ प्रभु के मतानुसार यद्यपि आधुनिक युग में शैक्षणिक, आर्थिक एवं धार्मिक कर्तव्यों में अनेक परिवर्तन हो चुके हैं और इन परिवर्तनों के मूल में अन्य सामाजिक और राजनीतिक संस्थाओं की प्रेरणा रही है, तथापि सामाजिक संरचना में आज के युग में भी परिवार के योगदान को अस्वीकार नहीं किया जा सकता है ।२ धर्मशास्त्रों में वर्णित पारिवारिक-शुद्धता की उदात्तता की तुलना किसी सीमा तक चीनी पारिवारिक जीवन के आदशों से कर सकते हैं । ३. कुल (परिवार) का स्वरूप एवं संघटन : जैन पुराणों की समीक्षा से यह स्पष्ट हो जाता है कि उस समय संयुक्त परिवार प्रणाली प्रचलित थी। उनके अनुसार परिवार वह संस्था है, जिसमें पति-पत्नी के अतिरिक्त माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची सभी को आवश्यक और उचित स्थान उपलब्ध था। ये जैन पुराणगत विचार यथार्थता के निकट इसलिए माने जा सकते हैं क्योंकि इनके समर्थक तत्कालीन अभिलेखीय-प्रमाण भी प्राप्य हैं । उदाहरणार्थ, मध्य भारत से उपलब्ध एक अभिलेख में स्पष्टतः उल्लिखित है कि कायस्थ रत्नसिंह के परिवार में पत्नी, एक पुत्र, दो बहू, पौत्र, एक पौत्री के अतिरिक्त अनेक अन्य सम्बन्धी भी विद्यमान थे।" __ जैन पुराणों में दाम्पत्य जीवन में यौन-सम्बन्ध ही आधारभूत नहीं था, अपितु धार्मिक और सामाजिक कार्यों पर सर्वाधिक बल दिया गया था, जो सुखसम्पन्न जीवन के लिए आवश्यक माना जाता था। जैन पुराणों की दृष्टि में पति और पत्नी दोनों ही परिवार के महत्त्वपूर्ण अवयव के रूप में मान्य थे। इसी लिए पद्म पुराण और महा पुराण के रचयिताओं ने पत्नी एवं पति को एक दूसरे का १. इंगेल्स-द ओरिजिन ऑफ द फेमिली, प्राइवेट प्रापर्टी ऐण्ड द स्टेट, मास्को, १६५२, पृ० ६६ २. प्रभु-वही, पृ० १२५ ३. ओल्गा लंग-चाइनिज़ फेमिली ऐण्ड सोसाइटी, लंदन १६४६, पृ०६ ४. पद्म ३१।२६-२७; हरिवंश ५०।६७; तुलनीय-अर्थशास्त्र २।१।१६-३४ ५. मिराशी-इन्स्क्रिप्शन्स ऑफ द कलचुरि चेदि इरा, नं०६३, पंक्ति ११-१७ द्रष्टव्य, यादव-सोसाइटी ऐण्ड कल्चर इन नार्दर्न इण्डिया, इलाहाबाद १६७३ ६. महा ६।५८-८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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