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________________ २६ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन कुलकरों के समय भोगभूमि की स्थिति थी, जिसमें माता-पिता संतान का सुख नहीं देख पाते थे और दूसरे उत्तरवर्ती सात कुलकरों के समय भोगभूमि एवं कर्मभूमि की स्थिति थी, जिसमें माता-पिता उनकी व्यवस्था के लिये चिन्तित होते थे।' महा पुराण में ही कुलकर को मनु कथित है। इनको प्रजा के जीवन के उपाय जानने से मनु, आर्य पुरुषों को कुल की भाँति इकट्ठा. रहने का उपदेश देने से कुलकर, अनेक वंश स्थापित करने से कुलधर और युग के आदि में होने से युगादिपुरुष कहा गया है ।२ जैन धर्म में नाभिराज अन्तिम कुलकर या मनु थे। उन्होंने पूरी व्यवस्था को प्रतिपादित कर मनुष्यों को संयमित एवं अनुशासित रहने का उपदेश दिया था। उन्होंने बिना बोये उत्पन्न हुए धान्य, वृक्षों के फलों तथा इक्षुरस आदि क्षुधा शान्त करने का तथा मिट्टी का बर्तन बना कर उससे कार्य करने को कहा । इसी समय कर्मभूमि का आविर्भाव हुआ। इसी कर्मभूमि में कर्म के आधार पर फल की व्यवस्था प्रतिपादित किया। इसी समय नागरीय तथा कौटुम्बिकी व्यवस्था के साथ कृषि-कर्म भी प्रारम्भ हो गया था। असि, मसि, कृषि, वाणिज्य, विधा और शिल्प जैसी कलाओं का जन्म भी इसी समय हुआ। जैन धर्म में इसी युग को 'कर्मभूमि' कहा गया है। २. कुल (परिवार) की महत्ता : प्राचीन सामाजिक व्यवस्था और संतुलन की प्रक्रिया के मूल में कुल अथवा परिवार का महत्त्वपूर्ण स्थान प्रायः सभी संस्कृतियों और सभ्य देशों में प्रारम्भ से रहा है। इसका संकेत आलोचित जैन पुराणों में भी उपलब्ध है । उदाहरणार्थ, महापुराण में कुल अथवा परिवार के नियामक के रूप में पिता को प्रतिष्ठित करते हुए उसे 'वंश-शुद्धि' का कारण माना गया है। परम्परा के अनुसार भारतीय समाज के व्यवस्थापक मनु तथा मनु सम्बन्धी श्रृंखला में अन्य व्यवस्थापक माने गये हैं, जिन्हें पुराण 'कुलकर' की संज्ञा प्रदान करते हैं और उन्हें पिता के पद पर आसीन करते हैं।' १. महा ३१६३-१६३, ३।२१० . २. वही ३।२११-२१२ ३. वही ३।१६१-२०६; भागचन्द्र भाष्कर-जैन दर्शन और संस्कृति का इतिहास, नागपुर १६७७, पृ०५ ४. पितुरन्वयशुद्धिर्यातत्कुलं परिभाष्यते । महा ३६०८५ ५. पद्म ३८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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