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सामाजिक व्यवस्था
प्राप्त करते थे । इसे समीक्षा और विचार-विमर्श का विषय बनाया जा सकता है । ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा सकती है कि जैन पुराणों के उक्त स्त्री-पुरुष का युग्म ( युगल) एक ही शरीर में आधा स्त्री और पुरुष का रहा होगा, जो साथ ही साथ मृत्यु को प्राप्त करते थे। यह प्रभाव वैदिक धर्म का था । इस कथन की पुष्टि हेतु जैनेतर धर्मों में भी साक्ष्य मिलता है । वैदिक देवताओं में 'अश्विनीकुमार' का उल्लेख हुआ है । इनके एक ही शरीर में अश्विनी और कुमार देवता थे जिसे अश्विनीकुमार कहा गया है। पारम्परिक पुराणों में 'अर्द्धनारीश्वर' का भी वर्णन उपलब्ध है ।
एक ही शरीर में आधा भाग पुरुष एवं आधा भाग स्त्री का हो सकता है । सम्भवतया युग्म की यह अत्यन्त प्राचीन परम्परा सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय में किसी न किसी रूप में सुरक्षित मिल जाती है । हरिवंश पुराण में वर्णित है कि तेरहवें कुलकर प्रसेनजित के पूर्व युगल उत्पन्न होते थे । सर्वप्रथम मरुदेव ने अयुग्म - एक सन्तान प्रसेनजित को उत्पन्न किया । हरिवंश पुराण का उक्त कथन सत्यता के अधिक निकट है । सम्भवतः यह कथन उसी विचार को द्योतित करता है, जैसी सम्भावना पूर्व व्यक्त की जा चुकी है ।
यहाँ पर यह कहना असमीचीन न होगा कि जैन सिद्धान्तानुसार एक शरीर में एक ही आत्मा होती है । केवल वनस्पति-जीवों में सम्प्रतिष्ठित जीवों के शरीर के आश्रित अन्य जीव भी होते हैं । जैनों के अनेकात्मा - सिद्धान्त के कारण यौगलिक की समस्या का समाधान नहीं होता । यौगलिक कौन थे ? इनकी उत्पत्ति और विकास कैसे हुआ ? मानव की उत्पत्ति से इनका क्या सम्बन्ध था ? क्या इनसे कोई नयी परम्परा प्रतिपादित होती है ? समाज में इनका क्या स्थान था ? इन प्रश्नों पर भविष्य में शोध की आवश्यकता है ।
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जैन पुराणों के कुलकरों को जैनेतर वैदिक धर्म के मन्वन्तरों (मनुओं) से समीकृत किया जा सकता है । ब्राह्मण धर्म में चौदह मन्वन्तर (मनुओं) का उल्लेख मिलता है । जिनमें से सात धर्म (सुगति ) मनु तथा सात अधर्म ( कुगति) मनु थे । २ महा पुराण भी इसी स्थिति का उल्लेख हुआ है । पहले पूर्ववर्ती सात
१. एकमेवासृजत्पुत्र प्रसेनजितमत्र सः ।
युग्मसृष्टेरिहैवोर्ध्वपितो व्यपनिनीषया ॥ हरिवंश ७।१६६
भागवत पुराण २|७|३६
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