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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन विभिन्न प्रकार के कल्पवृक्षों-मद्याङ्ग, तूर्याङ्ग, विभूषाङ्ग, स्रगङ्ग (माल्याङ्ग), ज्योतिङ्ग, दीपाङ्ग, गृहाङ्ग, भोजनाङ्ग, पात्राङ्ग तथा वस्त्राङ्ग-से प्राप्त होती थीं। ये चिरकाल तक भोगों को जीवनपर्यन्त भोगकर स्वर्ग जाते थे। इस युग में यौगलिक व्यवस्था थी। एक युगल जन्म लेता और वही अन्य युगल को जन्म देने के बाद समाप्त हो जाता था। इस प्रकार के अनेक युगल थे। कालान्तर में क्रम से कल्पवृक्ष नष्ट होने लगे। उसी युग में क्रमशः चौदह कुलकर. उत्पन्न हुए। जैन पुराणों में इनका वर्णन अधोलिखित है-प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमाङ्कर, क्षेमन्धर, सीमङ्कर, सीमन्धर, विपुलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अभिचन्द्र, चन्द्राभ, मरुदेव, प्रसेनजित तथा नाभिराज ।२
जैन मान्यतानुसार कुलकर एक सामाजिक संस्थापक थे। कुलकरों का भोग एवं त्याग के समन्वित जीवन को प्रतिपादित करना, जीवन मूल्यों को नियमबद्ध कर एकता एवं नियमितता प्रदान करना, मनुष्य के नैतिक कर्मों का संकेत करना, क्रियाकलापों को नियन्त्रित करने के लिए अनुशासन की स्थापना करना, सामाजिक प्राणी के मध्य सम्बन्ध स्थापित करना, कार्य-प्रणाली का मार्ग-दर्शन करना, शान्ति एवं संतुलन का प्रतिपादन करना, आजीविका, रीति, रिवाज एवं सामाजिक अर्हताओं की प्राप्ति का प्रतिपादन करना, सामाजिक गठन एवं सामूहिक क्रियाओं का नियन्त्रण करना तथा सामाजिक कल्याण करना प्रमुख उद्देश्य था।'
जैन पुराणो के अनुसार स्त्री पुरुष के युग्म साथ-साथ उत्पन्न होते एवं एक । साथ रह कर भोगों का उपभोग करते हुए आयु के अन्त में साथ ही साथ मृत्यु को १. मद्यतूर्यविभूषास्रग्रज्योतिर्दीपगृहाङ्गकाः ।
भोजनापत्रवस्त्राङ्गा दशधा कल्पशाखिनः ।। महा ३।३६; पद्म ३।६१ २. पद्म ३।३०-८८; हरिवंश ७।१०६-१७०; महा ३।२२-१६३
हरिवंश पुराण में अन्यत्र चौदह कुलकरों के नाम भिन्न-भिन्न प्राप्य हैं-कनक, कनकप्रभ, कनकराज, कनकध्वज, कनकपुङ्गव, नलिन, नलिनप्रभ, नलिनराज, नलिनध्वज नलिपुंगव, पद्मप्रभ, पद्मराज, पद्मध्वज और पद्मपुङ्गव (हरिवंश ६०१५५४-५५७)। महा पुराण के उत्तर पुराण में जिनसेन के शिष्य गुणभद्र ने सोलह कुलकर बताया है, जिनमें से हरिवंशपुराण के उक्त चौदह कुलकरों के अतिरिक्त पद्म और महापद्म को भी सोलह कुलकरों में सम्मिलित
किया है (महा ७६।४६३-४६६) । ३. पद्म ३।३०-८८; हरिवंश ७।१०६-१७०, महा ३।२२-१६३
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