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________________ साक्ष्य - अनुशीलन पुराणों की रचना की। जैनाचार्यों ने अपने धर्म के प्रचारार्थ सर्वप्रथम जनसाधारण की बोलचाल की भाषा में ही जैन साहित्य का निर्माण किया । इसलिए समय-समय पर परिवर्तित परिस्थिति में जैन पुराणों की रचना हुई । पारम्परिक पुराणों का रचना काल अज्ञात है । किन्तु, जैन पुराणों के रचनाकाल तथा रचनाकारों के विषय में पर्याप्त जानकारी प्राप्त हो जाती है । इससे विभिन्न पुराणों की तिथि निर्धारण करने में सुविधा होती है । जैन धर्म के प्रारम्भिक साहित्य प्राकृत में हैं । साधारण लोगों की बोलचाल की भाषा प्राकृत थी । इसी लिए जैनाचार्यों ने प्रारम्भ में प्राकृत में जैन पुराणों की रचना की है । प्राकृत के बाद जब संस्कृत भाषा का अधिक प्रभाव बढ़ा तो जैन विद्वान् इस क्षेत्र में भी पीछे नहीं रहे। उन्होंने बड़ी संख्या में संस्कृत में पुराणों का प्रणयन किया । इसके उपरान्त जब अपभ्रंश भाषा लोकप्रिय हो गयी तो जैनाचार्यों ने अपभ्रंश में रचना की । इसके साथ ही साथ जैनों ने क्षेत्रीय आवश्यकताओं की आपूर्ति के लिये क्षेत्रीय भाषाओं में भी पुराणों का सृजन किया । जैन पुराणों की रचना विभिन्न कालों में हुई है । प्राकृत ( महाराष्ट्री ) जैन पुराणों का रचना काल छठी शती से लेकर पन्द्रहवीं शती तक, संस्कृत पुराणों का समय सातवीं शती से अट्ठारहवीं शती तक और अपभ्रंश पुराणों की तिथि दशवीं शती से सोलहवीं शती है । प्रायः ये सभी जैन पुराण प्राकृत, संस्कृत या अपभ्रंश में से किसी एक ही भाषा में हैं, तथापि किसी-किसी प्राकृत रचना में कहीं कहीं पर संस्कृत व अपभ्रंश के शब्द मिलते हैं और अपभ्रंश रचना में संस्कृत व प्राकृत एवं देशी भाषाओं के शब्द यत्र-तत्र मिलते हैं । इस प्रकार सभी जैन पुराणों का रचना काल लगभग छठी शती से अट्ठारहवीं शती तक निर्धारित किया गया है । " आलोचित जैन पुराणों - पद्म पुराण, हरिवंश पुराण तथा महा पुराण ( आदि पुराण तथा उत्तर पुराण ) - की रचना तिथि सातवीं शती ई० से दशवीं शती ई० के मध्य है । इसलिये प्रस्तुत शोध की सीमा सातवीं शती ई० से दशवीं शती ई० है | [ङ] जैन पुराणों की विशेषताएँ: पुराणकारों ने पुराणों को अपने-अपने काल के विश्वकोष बनाने का प्रयत्न किया है। उसमें न केवल कथानक मात्र हैं, अपितु प्रसंगानुसार धर्म व नीति के अतिरिक्त नाना कलाओं और विज्ञान का भी परिचय विस्तार के साथ प्रस्तुत है । १. के ० ऋषभ चन्द्र - वही, पृष्ठ ७२-७३ Jain Education International १७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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