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________________ साक्ष्य अनुशीलन [ प्रतिश्रुति, सन्मति, क्षेमंकर, क्षेमंधर, सीमंकर, सीमंधर, विमलवाहन, चक्षुष्मान्, यशस्वी, अभिचन्द्र चन्द्राभ, महद्देव, प्रसेनजित, नाभिराय ]; चौबीस कामदेव, [ बाहुबलि आदि चौबीस कामदेवों का निर्देश मात्र हुआ है ] आदि को मिलाने से १६६ शलाकापुरुषों का उल्लेख मिलता है । इनके जीवन चरित्र के आधार पर पुराणों की रचना की गयी है, जिसमें संस्कृत का महा पुराण सर्वप्रथम माना जाता है । महा पुराण के दो भाग हैं-आदि पुराण और उत्तर पुराण । भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित आदि पुराण के दो खण्ड- इनमें प्रथम खण्ड में एक से पच्चीस तथा दूसरे खण्ड में छब्बीस से सैंतालिस पर्व - हैं । उत्तर पुराण में अतालिस से तिहत्तर पर्व हैं । आदि पुराण के एक से बयालिस पर्व तथा तैंतालिस पर्व के तीन श्लोक जिनसेन और इसके बाद के चौथे श्लोक से तिहत्तर पर्व तक जिनसेन के शिष्य गुणभद्र द्वारा प्रणीत हैं । महा पुराण की तिथि निश्चित रूप से ज्ञात नहीं है, तथापि महा पुराण के अध्ययन तथा तत्कालीन ग्रन्थों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि आदि पुराण एवं उत्तर पुराण की रचना क्रमशः क्ष्वीं एवं १० वीं शती में हुई थी। जिनसेन वीरसेन स्वामी के शिष्य थे । उन्होंने समस्त शलाकापुरुषों का चरित्र लिखने की इच्छा से महा पुराण की रचना प्रारम्भ की थी । परन्तु वे मात्र प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव एवं भरत का ही वर्णन कर सके । अन्य शलाकापुरुषों का वर्णन उनके शिष्य गुणभद्र ने अत्यन्त संक्षेप में किया है । आदि पुराण पुराण काल के संधिकाल की रचना है । अतः यह न केवल पुराण ग्रन्थ है, अपितु काव्य-ग्रन्थ है, काव्यग्रन्थ ही नहीं महाकाव्य भी है। यह संस्कृत साहित्य का अनुपम रत्न है । ऐसा कोई विषय नहीं है, जिसका इसमें प्रतिपादन न किया गया हो । महा पुराण में ही वर्णित हैं कि यह पुराण, महाकाव्य, धर्मकथा, धर्मशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, आचार- शास्त्र और युद्ध की श्रेष्ठ व्यवस्था-सूचक महान् इतिहास है । * १३ १. पद्म ३७५ - ८८ हरिवंश ७।१२५ - १७०, २५५।२७०; महा ७०।४६३ - ४६६, ( महा पुराण में ऋषभ एवं भरत की गणना कुलकरों में करने से इनकी संख्या सोलह हो गयी है) २. तिलोयपणति ४ / १४७२, ३. जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-४, वाराणसी १६७३, पृ० ८-२६ ४. मंहा, प्रस्तावना, पृ० २८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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