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________________ भौगोलिक दशा ४११ हरिवंश पुराण में इसकी स्थिति पश्चिम विदेह क्षेत्र सीता नदी और नील कुलाचल के मध्य बतायी गयी है।' मंगला : महा पुराण में इसकी स्थिति जम्बूद्वीप में बतायी गयी है।' महापद्मा : हरिवंश पुराण में पूर्व विदेह के सीता नदी और निषध पर्वत के मध्य में इसकी स्थिति वर्णित है।' महाराष्ट्र : महाराष्ट्र या मो-हो-ला-च अपने संकीर्ण अर्थ में दकन है। महाराष्ट्र गोदावरी और कृष्णा नदियों के मध्य स्थित था।' यह आधुनिक महाराष्ट्र प्रदेश है। महावप्रा : हरिवंश पुराण में इसकी स्थिति पश्चिम विदेह के सीतोदा नदी और नील पर्वत के मध्य में बतायी गयी है।' महिष : यह माहिषक से पृथक् था। मालव' : शक्तिसंगमतंत्र में अवन्ती के पूर्व और गोदावरी नदी के उत्तर में इसकी स्थिति मानी गयी है । यवन' : पश्चिमोत्तर सीमान्त पर स्थित यूनानियों को योन या यवन कहा जाता था। इनकी स्थिति निश्चित करना दुष्कर है। ये पश्चिमोत्तर भारत में थे। रम्यक या रम्या या रमणीया : पूर्व विदेह में सीता नदी और निषध पर्वत के मध्य में इसकी स्थिति बतायी गयी है।" १. हरिवंश ५॥२४५ २. महा ७०1१८२ ३. हरिवंश ५२४६ ४. महा १६।१५४ ५. लाहा-वही, पृ० २८६ ६. हरिवंश ५।२५१ ७. महा २६८० ८. वही १६।१५३, २०४७; पद्म १०१।८१; हरिवंश ५०५८ ६. शक्तिसंगमतंत्र ३७।२१ १०. महा १६।१५५; पद्म १०१।८१; हरिवंश ५०७३ ११. वही १६।१५२, ५६।२; हरिवंश ५।२४७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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