SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 428
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३६४ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन देना चाहिए, जिससे दान देने पुराण में उल्लेख आया है कि दान है और उसी का फल दान चोरों को लुटाने वाले उचित एवं योग्य हो और उस पात्र को उत्तम दान और लेने वाले दोनों को यथेष्ट लाभ हो सके ।' पद्म सम्यग्दृष्टि पुरुषों को दिया गया दान ही सार्थक उसको मिलता है । इसके विपरीत अन्य को दिया गया धन के समान है अर्थात् उसका उसे कोई लाभ नहीं मिल सकता | १ महापुराण में तो यहाँ तक कथित है कि कुपात्र को दान एवं पात्र इन तीनों का विनाश हो जाता है । पद्म पुराण में उत्तम पात्र को दान देने का विधान है । उत्तम पात्र की योग्यता के विषय में वर्णित है कि उसे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक् चारित्र से शुद्ध, समानदृष्टिवाला, परिग्रह से रहित तथा महातपश्चरण और तत्त्व में लीन होना चाहिए । देने से दाता, दान (v) दान की वस्तुएँ : दान में कौन सी वस्तुएँ दी जानी चाहिए ? इसका विवेचन हमारे आलोच्य पुराण में हुआ है । महा पुराण में दस प्रकार की वस्तुओं को दान में देने की व्यवस्था प्रदत्त है । कन्या, हाथी, सुवर्ण, अश्व, गो, दासी, तिल, रथ, भूमि तथा गृह-इन दस वस्तुओं को दान में देनी चाहिए ।" यहाँ यह विचारणीय विषय है कि उक्त दस दान की वस्तुएँ लौकिक जीवन से सम्बद्ध रखने वाली हैं और इनसे पारलौकिक लाभ नहीं हो सकता । चूंकि जैन धर्म निर्वृत्तिमूलक है । ऐसी परिस्थिति में प्रवृत्तिमूलक विचारधारा को प्रश्रय न देना समीचीन है । यही कारण है कि महा पुराण ने उक्त दान की वस्तुओं को उपेक्षा का विषय बताया है । इससे दान के वास्तविक फल की प्राप्ति नहीं हो सकती । ये दान की वस्तुएँ स्वार्थपरक हैं । इसी लिए महा पुराण में उल्लिखित है कि शास्त्र ही प्रमुख साधन है, जिससे सिद्धि मिलती है । शास्त्र ज्ञान से प्राप्त होता है, अतएव शास्त्र दान की मुख्य वस्तु है ।" १. २. पद्म १४।६६ ३. कुपातेऽयं विसृष्ट् ववं त्रयाणां विहतिः कृता । महा ५६ ६० ४. पद्म १४१५३-५८ महा ६३।२७५ ५. कन्याहस्तिसुवर्णवाजिकपिलदासीतिलस्यन्दन क्ष्म प्रतिबद्धमत दशधा दानं दरिद्रेप्सितम् ॥ महा ५६ ६६ ६. ७. महा ५६।८१-६६ वही ५६।७३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy