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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन २. राष्ट्रीय व्यापार : राष्ट्रीय व्यापार उन्नति पर था । गाय, बैल, भैंस, ऊँट आदि पशुओं के क्रय के समय प्रतिभू का होना अनिवार्य था । यह प्रतिभू आजकल के कर-अधीक्षक के समान रहा होगा, जो पशुओं के क्रयोपरान्त अनुबन्ध पत्र तथा रसीद आदि देता था। वर्तमान समय की भाँति बाजार में सामान आनेले जाने पर उस समय भी कर देने की व्यवस्था रही होगी। देश का अन्तः व्यापार गाड़ियों (शकट) द्वारा करने का उल्लेख पद्म पुराण में उपलब्ध है । महा पुराण के रचना काल में पशु व्यापार का अत्यधिक प्रचलन था। हरिवंश पुराण में नदियों से व्यापार के लिए नौकाओं के प्रयोग का उल्लेख प्राप्य होता है । उक्त पुराण से स्पष्ट है कि उस समय राजपथ द्वारा व्यापार होता था, जिस पर दस्युओं का घोर आतंक रहता था । कारवाँ की सूचना पाते ही वे उन्हें लूट लेते थे।
३. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार : पद्म पुराण में अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के प्रोत्साहनार्थ यह उल्लेख आया है कि धनोपार्जन, विद्या ग्रहण एवं धन संचय करनाये तीनों कार्य यद्यपि मनुष्य के अधीन हैं, तथापि अधिकांशतः इनकी सिद्धि विदेशों में ही होती है।
जैन पुराणों में उल्लिखित है कि व्यापारी जलमार्ग से धनोपार्जनार्थ विदेश (बाहर) जाया करते थे। जहाज के लिए पोत एवं यानपत्र' शब्द पद्म पुराण में व्यवहृत हुए हैं । हरिवंश पुराण में उशीरावर्त देश से कपास क्रय कर ताम्रलिप्त नगर में विक्रय करने का उल्लेख हुआ है । महा पुराण में रत्नों का व्यापार समीपवर्ती देशों (प्रत्यन्तवासिन) के साथ होता था।" १. यद्वच्चप्रतिभूः कश्चिद् यो क्रये प्रतिगृह्यते । महा ४२।१७३ २. पद्म ३३।४६ ३. महा ४२।१५०-१७१ ४. हरिवंश ८।१३४ ५. वही ४६२७-२६ ६. द्रविणोपार्जनं विद्याग्रहणं धर्मसंग्रहः ।
स्वाधीनमपि तत्प्रायो विदेशे सिद्धमश्नुते ॥ पद्म २५१४४ ७. महा ७०।१५०; हरिवंश २११७८-८० ८. पद्म ८३१८० ६. वही ५५।६१ १०. हरिवंश २१७५-७६ ११. महा ३२१७०
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