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________________ ३०६ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन [ख चित्रकला १. सामान्य परिचय : प्राचीन काल से भारतीय समाज में चित्रकला का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। यह सामाजिक जीवन की सरसता एवं गतिशीलता का परिचायक रहा है। यही कारण है कि चित्रकला की परिगणना ललित कलाओं के अन्तर्गत हुई है। जिनभद्र मुनि कृत 'कल्पसूत्र की टीका' में चौसठ स्त्रीकलाओं की तालिका में चित्रकला को भी स्थान प्रदत्त है ।' जैनेतर विद्वान् वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित चौसठ कलाओं के अन्तर्गत चित्रकला (आलेख्यम्) का चतुर्थ स्थान है । कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तृतीय अध्याय की टीका करते हुए यशोधर पण्डित ने आलेख्य (चित्रकला) के छ: अंग-रूपभेद, प्रमाण, भाव, लावण्ययोजना, सादृश्य एवं वणिकाभंग आदि--का उल्लेख किया है ।२ आचारांगसूत्र में जैन साधुओं और ब्रह्मचारियों को चित्रशालाओं में प्रवेश करने एवं ठहरने पर कठोर प्रतिबन्ध था। ऋषभदेव ने अपने पुत्र अनन्त विजय को चित्रकला की शिक्षा 'प्रदान की थी। जिनालय में एक चित्रशाला होने तथा रथों को चित्रित करने का निदेश वरांग-चरित में उपलब्ध होता है ." नायाधम्म कहाओ ग्रन्थ में ललितगोष्ठी नामक प्रमोद सभा का वर्णन वर्णित है। २. जैन चित्रकला : उद्भव और विकास : जैन कला सर्वाधिक प्राचीन राजपूती चित्रों से भी एक शताब्दी पूर्व की सिद्ध होती है। ताड़पत्र पर अंकित 'कल्पसूत्र' तथा 'कालकाचार्यकथा' पर आधारित पार्श्वनाथ, नेमिनाथ, ऋषभनाथ तथा अन्य तीर्थंकरों के दृष्टान्त चित्र जनकला के सर्वाधिक प्राचीन दृष्टान्त हैं। जैन चित्रकला का अस्तित्व हर्ष के समकालीन पल्लव राजा महेन्द्रवर्मा (७वीं शती) के समय में निर्मित सित्तन्नवासल गुफा की पाँच जिन-मूर्तियों से प्रमाणित होता है । समग्र भारतीय चित्न शैलियों में १५वीं सदी से पूर्व जितने भी चित्र उपलब्ध हए हैं, उन सब में मुख्यतः जैन चित्र ही प्राचीन हैं। ये चित्र दिगम्बर जैनियों से सम्बद्ध हैं, जिन्हें अपने सम्प्रदाय के ग्रन्थों को चित्रित कराने तथा करने की उत्कट अभि१. वाचस्पति गैरोला-भारतीय चित्रकला, इलाहाबाद, १६६३, पृ० ६२ २. वाचस्पति गैरोला-वही, पृ० ४८ ३. आचारांगसूत्र २।२।३।१३ .४. महा १६।१२१ ५. वरांगचरित २०५८ ६. नायाधम्म कहाओ १।१६७७-८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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