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________________ ललित कला ३०५ (vii) ताण्डव नृत्य' : इसकी परिगणना उद्धत-नृत्य के अन्तर्गत होती है । तालों, कलाओं, वर्णों तथा लयों पर यह आधारित होता है । महा पुराण के वर्णनानुसार पाद, कटि, कण्ठ तथा हाथ को विभिन्न प्रकार से संचालित करना ही ताण्डव नृत्य है। इस नृत्य को भक्तिपूर्वक करने का विधान है ।२ जैनेतर ग्रन्थों में ताण्डव मृत्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। (viii) निष्क्रमण नृत्य' : इस नृत्य में फिरकियों के साथ दो-तीन हाथ आगे आ जाते हैं और पुन: दो-तीन हाथ पीछे हट जाते हैं । (ix) पुतली नत्य* : जब यन्त्र की पट्टी पर लकड़ी की पुतली बनाकर नृत्य प्रदर्शित करते हैं तो इसे पुतली नृत्य नाम से सम्बोधित करते हैं। इसी का विकसित रूप आजकल की कठपुतली नृत्य है । (x) बहरूपिणो नृत्य : इसके अन्तर्गत ललनाएँ अपना स्वरूप परिवर्तित कर एवं मुक्तामणि धारण कर नृत्य करती हैं। अनेक प्रतिबिम्ब पड़ने के कारण इसे बहुरूपिणी नृत्य नाम प्रदत्त है। (xi) बाँस नत्य : महा पुराण से ज्ञात होता है कि उस समय एक बाँस के ऊपर नृत्य किया जाता था, इसमें बाँस पर फिरकी लगाते थे। (xii) लास्य नत्य : सावन माह में दोला क्रीड़ा के समय कामिनियों द्वारा यह नृत्य किया जाता था। यह नृत्य लोकप्रिय तथा रसोत्पादक होता था। सुकुमार प्रयोगों से परिपूर्ण होने के कारण इस नृत्य को लास्य नृत्य नाम प्रदान किया गया है। (xili) सामूहिक नृत्य : महा पुराण में वर्णित है कि अनेक व्यक्ति पारस्परिक रूप में संयुक्त हो कर इस प्रकार नृत्य करते थे मानों सभी की आत्मायें एक हों। इस प्रकार के नृत्य को सामूहिक नृत्य कहते हैं । यह नृत्य घेरा बनाकर करते थे। (xiv) सूची नत्य : जब नर्तकियाँ नृत्य करते समय सिमटकर सूची के रूप में परिणत हो जाती हैं तब उसे सूची नृत्य कहते हैं । इसी प्रकार जब किसी पुरुष की ऊँगली पर लीलापूर्वक नृत्य होता है तो उसे भी सूची नृत्य कहते हैं।२० (xv) नीलांजना नृत्य" : इस नृत्य से वैराग्य उत्पन्न होता था। १. महा १४।१३३, ५०।३४; ६. महा १४११४३ हरिवंश ८।२३३ ७. वही १४।१३३, १४।१५५ २. महा १४।१२०-१२१ ८. वही १४।१४८-१४६ ३. वही १४।१३४ ६. हरिवंश २११४४ ४. वही १४।१५० १०. महा १४।१४२ ५. वही १४।१४१ ११. पद्म श२६२-२६४ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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