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________________ ललित कला २६५ के साथ अन्य वाद्यों के स्वरों का भी उल्लेख उपलब्ध है ।' वीणा से सम्बन्धित अधोलिखित वाद्यों का उल्लेख जैन पुराणों में हुआ है : अलाबु : इसका उल्लेख महा पुराण एवं वैदिक ग्रन्थों में प्राप्य है । आधुनिक वीणाओं में अलाबु (लोकी का तुम्बा) प्रयुक्त होता है । सम्भवतः उक्त वस्तुओं का भी प्रयोग अलाबु में किया जाता था । इसके आकार-प्रकार के विषय में कुछ भी ज्ञात नहीं है । नेमिचन्द्र ने अलाबु को सुषिर वाद्य के अन्तर्गत रखा है क्योंकि तुम्बी वाद्य के लिए अलाबु शब्द व्यवहृत हुआ है । अलाबु सारंगी का अत्यधिक विकसित रूप है, जो भारतीय सारंगी से मिलती-जुलती है। मुख्यतः जैसलमेर की मंजीनिया जाति द्वारा इसका प्रयोग होता था । इसका प्रयोग संगीत के लिए किया जाता था । " तंत्री : तंत्री वाद्य का वर्णन हरिवंश पुराण में उपलब्ध है ।" पद्म पुराण में भी तंत्री के लिए वीणा शब्द प्रयुक्त हुआ है । यह एक विशेष प्रकार की वीणा थी । इसमें प्रयुक्त तार की संख्यानुसार इसका नामकरण होता था, जैसे एक तार की वीणा को एकतन्त्री वीणा या तीन तार की वीणा को त्रितंत्री वीणा की संज्ञा से सम्बोधित करते थे । सुघोषा : हरिवंश पुराण में सतरह तार की सुघोषा नामक वीणा का उल्लेख हुआ है ।" भरत ने घोषवती वीणा का नामोल्लेख किया है, किन्तु इसका विस्तृत विवरण उपलब्ध नहीं है । परवर्ती आचार्यों ने घोषवती को घोषा, घोषक, ब्राह्मी तथा एकतंत्री आदि संज्ञाओं से अभिहित किया है । घोषवती में नौ तार प्रयुक्त होते थे । इसका विकसित रूप ही सुघोषा है । (२) अवनद्ध वाद्य : चमड़े से मढ़कर निर्मित वाद्य को अवनद्ध वाद्य नाम से १. महा १४।११७ २. वही १२ २०३ ३. धर्मावती श्रीवास्तव - वही, पृ० १०, लालमणि मिश्र - वही, पृ० ६२ 8. नेमिचन्द्र - आदि पुराण में प्रतिपादित भारत, वाराणसी, १६६८, पृ० ३२० लालमणि मिश्र - वही, पृ० १८२ ५. ६. हरिवंश ८|४४ ७. पद्म २४।२० हरिवंश १६।१३७ लालमणि मिश्र - वही, पृ० ४० ८. £. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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