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________________ २६६ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन सम्बोधित करने का उल्लेख जैन पुराणों में हुआ है। इसके अन्तर्गत मृदंगादि वाद्य आते हैं । अवनद्ध वितत वाद्य का भी बोधक है। भरत ने अवनद्ध वाद्यों के अन्तर्गत मुख्यतः पुष्कर वाद्यों को सम्मिलित किया है । इस प्रकार के वाद्यों की संख्या एक सौ से भी अधिक थी ।२ जैन पुराणों में अधोलिखित अवनद्ध वाद्यों का वर्णन उपलब्ध है : (i) आनक : यह एक प्रकार का मुख वाद्य है । इसकी ध्वनि गम्भीर होती है । आधुनिक नगाड़े या नौबत वाद्य से इसकी समता की जा सकती है। (ii) झल्लरी : पद्म पुराण में झल्ला" शब्द प्रयुक्त हुआ है, जिसे झल्ला या झलरी कहा जा सकता है। आधुनिक समय में इसे खंजरी, दायरा, चंग आदि नाम से सम्बोधित करते हैं। यह चमड़े से मढ़ा होता था तथा बायें हाथ में अंगूठे में लटका कर दाहिने हाथ के शंकु द्वारा इसका वादन होता था। इसकी गणना घन तथा सुषिर वाद्य के अन्तर्गत हुआ है। (iii) ढक्का : इस वाद्य का उल्लेख पद्म पुराण में उपलब्ध है। इसका वर्णन संगीत-रत्नाकर, संगीत-मकरन्द, संगीतसार, मानसोल्लास में भी वर्णित है । ढवस के सदृश्य इसका आकार होता है । इसके दोनों मुख तेरह-तेरह अँगुल रखे जाते हैं । इसको बायीं बगल में दबाकर दाहिने हाथ से डण्डे से बजाते हैं । इसे धौंसा नाम से भी सम्बोधित करते हैं। (iv) दर्दर : यह घट की आकृति का होता है। इसका मुख नौ अँगुल का होता है, जिसके ऊपर चमड़े की चूड़ी बारह अंगुल पर होती है । पणव के समान चमड़े की चूड़ियाँ सुतलियों से कसी होती हैं । यह दोनों हाथ से बजाया जाता है । कालान्तर में इसका प्रयोग घट एवं घड़ा के लिए होने लगा है।' १. पद्म २४।२०; हरिवंश १६१४३ २. लालमणि मिश्र-वही, पृ० ६५ ३. हरिवंश ११।१२०; महा १३७, ६८, ५४१ ४. पद्म ६।३७६; हरिवंश ४।६, ५६७६; महा १५।१४७ ५. वही ६।३७६ ६. वही ८०५५ ७. लालमणि मिश्र-वही, पृ० ६६ ८. पद्म ५८।२८; हरिवंश २२।१२ ६. लालमणि मिश्र-वही, पृ० १५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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