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________________ २६४ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन पदगत गान्धर्व : इसके अन्तर्गत जाति, तद्धित, छन्द, सन्धि, स्वर, विभक्ति, सुबन्त, तिङन्त, उपसर्ग एवं वर्ण आदि आते हैं।' तालगत गान्धर्व : इस ताल के इक्कीस भेद-आवाप, निष्काम, विक्षेप, प्रवेशन, शम्याताल, परावर्त, सन्निपात, सवस्तुक, मात्रा, अविदार्य, अङ्ग, लय, गति, प्रकरण, यति, दो प्रकार की गीति, मार्ग, अवयव, पादभाग तथा सपाणि हैं। जैनेतर साक्ष्य से भी इसके इक्कीस प्रकार की पुष्टि हो जाती है। भरत के मतानुसार इसके अन्तर्गत इक्कीस प्रकार होते हैं । जैन पुराणों में तत वाद्य संगीत विषयक विवरण अग्रलिखित है : (1) तुणव : इसे सितार के रूप में प्रयोग करने का उल्लेख महा पुराण में उपलब्ध है। त्रितंत्री वीणा का विकास तम्बूरा और सितार के संयुक्त रूप में हुआ था।" सितार के रूप में प्रयुक्त तम्बूरा को तुणव कहा जा सकता है । (ii) वीणा : महा पुराण में वीणा के स्वर को सर्वश्रेष्ठ माना गया है।' हाथ की अंगुलियों से ताडित वीणा से मधुर स्वर प्रवाहित होता है । अन्य स्थल पर उक्त पुराण में वीणा वादन की मुद्रओं का रुचिकर चित्रण उपलब्ध है। एक विधि के अनुसार ओठों के अग्रभाग से वीणा को दबाकर अंगुलियों से वीणा वादन करते थे। अन्य रीत्यानुसार वीणा वादन के साथ गायन भी करते थे । पाण्डव पुराण में घोषा, सुघोषा, महाघोषा एवं घोषवती वीणाओं का उल्लेख हुआ है ।' महा पुराण में वीणा १. जातितद्धितवृत्तानि सन्धिस्वरविभक्तयः । नामाख्यातोपसर्गाद्य वर्णाद्यास्ते पदे विधिः ॥ हरिवंश १६१४६ आवापश्चापि निःकामो विक्षेपश्च प्रवेशनम् । शम्यातालं परावर्तः सन्निपातः सवस्तुकः । मंत्राविदार्यगलया गति प्रकरणं यतिः । गीति च मार्गावयवाः पादभागा: सपाणयः ॥ हरिवंश १६१५०-१५१ ३. भरतनाट्यशास्त्र, अध्याय २८, श्लोक १५-१६ ४. महा १५॥१४७ ५. लालमणि मिश्र-भारतीय संगीत वाद्य, नई दिल्ली, १६७३, पृ० ५७ ६. पद्म ६।३७६; हरिवंश ८।४४ ७. महा १२।२३६ ८. वही १२।१६६-२०४ ६. पाण्डव ७।६६-७० २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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