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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन (६) समुदाय : गद्य, पद्य एवं मिश्र (चम्पू) के भेद से तीन प्रकार के समुदाय होते हैं।
(७) विराम : किसी विषय का संक्षेप से उल्लेख करना विराम कहलाता है।
(८) सामान्याभिहित : एकार्थक (पर्यायवाची) शब्दों का प्रयोग करना सामान्याभिहित का बोधक है।'
(९) समानार्थत्व : एक शब्द द्वारा अनेकार्थ का प्रतिपादन करना समानार्थत्व है।
(१०) लेख : जिसका पद्म रूप व्यवहार होता है, उसे लेख कहते हैं ।
पद्म पुराण में जाति के ही आठ भेद-धैवती, आर्षभी, षड्ज-षड्जा, उदीच्या, निषादिनी, गान्धारी, षड्जकैकशी एवं षड्जमध्यमा तथा दस भेद-गान्धारीदीच्या, मध्यपञ्चमी, गान्धारपञ्चमी, रक्तगान्धारी, मध्यमा, आन्ध्री, मध्यमोदीच्या, कर्मारवी, नन्दिनी एवं कैशिकी-कुल अट्ठारह भेद वर्णित हैं। अट्ठारह जातियों का वर्णन हरिवंश पुराण में भी उपलब्ध है, जिनमें आठ षड्ज ग्राम-पाड्जी, आर्षभी, धैवती, निषादजा, सुषड्जा, उदीच्यया, षड्जकैशिकी तथा षड्जमध्या और दस मध्यम ग्राम-गान्धारी, मध्यमा, गान्धारोदीच्यवा, रक्तान्धारी, रक्तपञ्चमी, मध्यमोदीच्यवा, नन्दयन्ती, कर्मारवी, आन्ध्री तथा कैशिकी-से सम्बन्धित जातियाँ हैं । जैनेतर साक्ष्यों से भी जाति के अट्ठारह भेद उपलब्ध होते हैं।'
हरिवंश पुराण के उल्लेखानुसार मध्यमा, षड्जमध्या एवं पञ्चमी तीन जातियाँ साधारण स्वरगत हैं । उक्त ग्रन्थ में अन्य स्थल के वर्णन से यह स्पष्ट होता है १. गद्यः पद्यश्च मिश्रश्च समुदायस्त्रिधोदितः । पद्म २४।३१ २. संक्षिप्तता विरामस्तु । पद्म २४।३२ ३. सामान्याभिहितः पुनः शब्दानामेकवाच्यानां प्रयोगः परिकीर्तितः । पद्म २४।३२ ४. तुल्यार्थतैकशब्देन बह्वर्थप्रतिपादनम् । पद्म २४।३३ ५. पद्मव्यवहृतिर्लेख। पद्म २४।३४ ६. पद्म २४।१२-१५ ७. हरिवंश १६१७४-१७७ ८. के. वासदेव शास्त्री-संगीतशास्त्र, पृ० ५३ ६. हरिवंश १६१७८
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