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________________ ललित कला २८५ [li] वृत्ति : पद्म पुराण में द्रुता, मध्यमा एवं विलम्बिता तीन वृत्तियों के प्रयोग को ही वृत्ति नाम से सम्बोधित किया गया है । इनका प्रयोग गाते समय होता है। __ [ili] जाति : आचार्य अभिनव गुप्त भरतकोश में जाति को पारिभाषित करते हुए वर्णित करते हैं कि रज्जन और अदृष्ट अभ्युदय को जन्म देते हुए विशिष्ट स्वर ही विशेष प्रकार के सन्निवेश से युक्त होने पर 'जाति' के बोधक होते हैं। दस लक्षणों से युक्त विशिष्ट स्वर के अनुशीलन से सन्निवेश जाति का बोध होता है । २ ___ जैन पुराणों के अनुशीलन से जाति के भेदोपभेद पर प्रकाश पड़ता है। पद्म पुराण में जाति के अधोलिखित दस भेद उपलब्ध हैं : (१) स्थान : इसमें उरस्थल, कण्ठ और मूद्धी के भेद से तीन उपभेद होते हैं। (२) स्वर : षड्ज, ऋषम, गान्धार, मध्यम, पंचम, धैवत और निषाद आदि स्वरों के सात भेद हैं।' (३) संस्कार : लक्षण और उद्देश्य अथवा लक्षणा और अभिधा की अपेक्षा दो प्रकार के संस्कार मान्य हैं । (४) विन्यास : पदवाक्य, महावाक्य आदि के विभाग सहित जो कथन होता है, उसे विन्यास संज्ञा से अभिहित किया गया है।' (५) काकु : सापेक्षा और निरपेक्षा के भेद से काकु दो प्रकार का होता है। १. भेजे वृत्तीर्यथास्थानं द्रुतमध्यविलम्बिताः । पद्म १७।२७८ २. अभिनव गुप्त--भरतकोश, पृ० २२७ ३. पद्म २४।२७-३४ ४. उरः कण्ठः शिरश्चेति स्थानं त्रिधा स्मृतम् । पद्म २४।२६ ५. षड्जर्षभो तृतीयश्च गन्धारो मध्यमस्तथा । पञ्चमो धैवतश्चापि निषादश्चेत्यमी स्वराः ॥ पद्म २४।८ ६. संस्कारो द्विविधः प्रोक्तो लक्षणोद्देशतस्तथा । पद्म २४।३० ७. विन्यासस्तु सखण्डाः स्युः पदवाक्यास्तदुत्तरा।। पद्म २४।३० .. सापेक्षा निरपेक्षा व काकुर्भेदद्वयन्विता। पद्म २४।३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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