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________________ २५८ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन क्रमशः १२, १० एवं ८ हाथ (१८, १५ एवं १२ फुट ) चौड़ी होनी चाहिए । रथ्या की चौड़ाई राजमार्ग से आधी और उपरध्या की चौड़ाई राजमार्ग से चौथाई होनी चाहिए | ये रथ्यायें एवं उपरध्यायें नगरों को छोटे-छोटे उपखण्डों में बाँटने में सहायक होती हैं । ' [iv] सुरक्षा व्यवस्था : नगर- विन्यास में सुरक्षा व्यवस्था का महत्त्वपूर्ण स्थान है । प्राचीन काल में सुरक्षा के दो साधन थे - ( १ ) प्राकृतिक और (२) कृत्रिम | अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि नदी, जल, पर्वत, पत्थरसमूह, मरुस्थल, जंगल आदि प्राकृतिक साधन थे । समराङ्गण सूत्रधार में नगरों के रक्षार्थ पाँच प्रकार के कृत्रिम साधन वर्णित हैं - ( १ ) परिखा, (२) वप्र, (३) प्राकार, (४) द्वार एवं गोपुर, (५) रथ्या । उक्त के अतिरिक्त अट्टालक एवं बुर्ज शब्द का उल्लेख जैन पुराणों में भी उपलब्ध होता है, जिनका वर्णन अग्रलिखित है : (१) परिखा : 'परिखा' शब्द की व्युत्पत्ति परिपूर्वक खन् धातु से अ प्रत्यय होकर अन प्रत्यय का लोप होने एवं स्त्रीत्व विवक्षा में टाप् प्रत्यय होने से परिखा शब्द निर्मित हुआ है । चारों ओर खुदी हुई खाईं को परिखा संज्ञा से अभिहित करते हैं । नगर की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर परिखा या खाईं का निर्माण किया जाता था । पद्म पुराण के अनुसार राजगृह नगर की परिखा उसे समुद्र के समान घेरे हुई थी। सुरक्षा की दृष्टि से नगर के अतिरिक्त मन्दिरों के चारों ओर परिखाओं के निर्माण करने का उल्लेख पद्म पुराण में हुआ है ।" महा पुराण के वर्णनानुसार जल, पंक तथा रिक्त नामक तीन प्रकार की परिखायें होती थीं । जैनेतर ग्रन्थ अर्थशास्त्र, समराङ्गणसूत्रधार", महाउम्मग जातक' में भी तीन प्रकार की परिखाओं – जल परिखा, पंक परिखा तथा रिक्त परिखा- - का उल्लेख १. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल - वही, पृ० ८५-८६ २. अर्थशास्त्र, भाग २, अध्याय ३, पृ० ५४ ३. द्विजेन्द्रनाथ शुक्ल - वही पृ० १०१-१०२ ४. पद्म २।४६ ५. वही ४०।२६ ६. महा १६।५३ ७. अर्थशास्त्र, भाग १ ८. ई. समराङ्गणसूत्रधार, भाग १, पृ० ४० जातक, संख्या ५४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only इ www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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