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________________ कला और स्थापत्य २५७ कथित है कि उक्त राजधानियों में बिना परिश्रम के अन्न, फल एवं औषधि मिलती थी। अनाज से खत्तियाँ परिपूर्ण थीं। मार्ग धूलि एवं कण्टक रहित थे। ऋतुएँ आनन्दप्रद थीं । वर्षा आवश्यकतानुसार होती थी।' राजधानी में ८०० ग्राम होने का उल्लेख मिलता है। [iii] सड़क निर्माण : नगरों में सड़क या मार्ग निर्माण परम कुशलता का परिचायक होता है । जैन पुराणों में राजमार्ग, प्रतोली और रथ्या शब्द सड़क के लिए व्यवहृत हुए हैं। राजमार्ग सीधे बनाये जाते थे ।। पद्म पुराण में वर्णित है कि नगर में गलियाँ इतनी संकरी होती थीं कि किसी व्यक्ति के वेग से आने पर खड़े हुए व्यक्ति के हाथ से बर्तन गिर जाता था। राजमार्ग नगर के मध्य से होकर जाता था । समराङ्गण-सूत्रधार में राजमार्ग की चौड़ाई की माप-ज्येष्ठ, मध्य और कनिष्ठ-तीन प्रकार के नगरों में बाँट कर निकाली गयी है, जो क्रमशः २४, २० एवं १६ हाथ (३६ फुट, ३० फुट एवं २४ फुट) होनी चाहिए। इनका इतना विस्तार होना चाहिए कि पैदल, चतुरंगिणी सेना, राजसी जुलूस एवं नागरिकों के चलने में किसी प्रकार का अवरोध न हो। यह राजमार्ग पक्का निर्मित करना चाहिए।' शुक्राचार्य के अनुसार उत्तम, मध्यम एवं कनिष्ठ प्रकार के नगरों के राजमार्गों की चौड़ाई क्रमशः ४५ फुट, ३० फुट एवं २२१ फुट होनी चाहिए।' पद्म पुराण में वर्णित है कि जहाँ पर दो मार्ग एक दूसरे को समकोण पर काटें, उस स्थान को चौराहा (चत्वर) कहा गया है और जब एक मार्ग के बीच से कोई मार्ग निकलता हो तो उस स्थान को तिराहा (त्रिक) कहा गया है। विशेष अवसरों पर इन तिराहों एवं चौराहों सहित मार्ग को सुसज्जित किया जाता था। समराङ्गण-सूत्रधार में तीन प्रकार की रथ्यायें वर्णित हैं -महारथ्या, रथ्या एवं उपरथ्या। जेष्ठ, मध्यम एवं कनिष्ठ नगरों के भेद के कारण महारथ्यायें १. पद्म ३।३१६-३३६ २. महा १६।१७५ ३. पद्म ६।१२१-१२२; महा ४३।२०८, २६।३ ४. वही १२०।२७ ५. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल-भारतीय स्थापत्य , लखनऊ, १६६८, पृ० ८५ ६. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल-वही, पृ० ८६ ७. पद्म ६६।१२-१३ . १७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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