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________________ कला और स्थापत्य २५६ उपलब्ध है। परिखा के भीतरी दोनों किनारों एवं तल की सुदृढ़ता के लिए ईंटों या पत्थरों की चुनाई की जाती थी। मेगस्थनीज़ के अनुसार पाटलिपुत्र की परिखा ६०० फुट चौड़ी थी। जैनेतर ग्रन्थ अर्थशास्त्र में प्रथम परिखा १४ दण्ड, द्वितीय परिखा १२ दण्ड और तृतीय परिखा १० दण्ड विस्तीर्ण होती थीं। परिखा की गहराई चौड़ाई से कम होती थी। इसकी गहराई सामान्यतः १५ फुट होती थी। परिखा की गहराई नापने के लिए पुरुष (पुरुसा) का प्रयोग किया जाता था। परिखा के जल में कभी-कभी भयंकर जलजीव, घड़ियाल, नाक (नक्र) और मगर आदि छोड़े जाते थे, जिससे शत्रु परिखा को पार न कर सके। परिखा की सुन्दरता के लिए उसके जल में कमल, कुमुद आदि जलपुष्प और हंस, कारण्डव आदि पक्षियों का उल्लेख प्राप्य है। कभी-कभी परिखाओं में नालों (परिवाहों) की गन्दगी गिराई जाती थी। आलोचित जैन महा पुराण में भी उक्त उल्लेख मिलता है। (२) वा (कोट) : महा पुराण में वप्र के निर्माण का अति रोचक वर्णन हुआ है। परिखा के निर्माणोपरान्त वप्र (रैम्पर्ट) निर्मित किया जाता था। परिखा के उत्खनन से जो मिट्टी निकलती थी, उसी से वप्र का निर्माण होता था। इसके निर्माण के लिए यह मिट्टी परिखा से चार दण्ड (२४ फुट) की दूरी पर एकत्र की जाती थी। वप्र के ऊपर कटीली एवं विषैली झाड़ियाँ लगाने से वह शत्रु के लिए अगम्य हो जाता था। यह सामन्यतया छः धनुष (३६ फुट) ऊँचा तथा बारह धनुष (७२ फुट) चौड़ा होता था। कोट के ऊपरी भाग में अनेक कंगूरे निर्मित किये जाते थे, जो गाय की खुर के समान गोल तथा घड़े के उदर के समान बाहर की ओर उभरे हए आकार के होते थे। इसी प्रकार का वर्णन जैनेतर ग्रन्थ समराङ्गणसूत्रधार में भी उपलब्ध है। (३) प्राकार : प्राकारों (परकोटे) का निर्माण वनों के ऊपर होता था। प्राकार तीन प्रकार के होते थे : (१) प्रांसु प्राकार या मृद्-दुर्ग (धूलकोट) (२) इष्टका प्राकार (ऐष्टक प्राकार) और (३) प्रस्तर प्राकार ।" इसकी ऊँचाई वप्र १. उदय नारायण राय-प्राचीन भारत में नगर और नागरिक जीवन पृ० २४१-२४६ २. महा ४।१०८, १४१६६, १६।५३-५७ ३. वही १६५८-५६ ४. समराङ्गण-सूत्रधार, पृ० ४० ५. उदय नारायण राय-वही, पृ० २४५-२४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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