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________________ कला और स्थापत्य २४६ सरोवर, वापिका और विभिन्न मणियों से युक्त भवन होते थे। जैनेतर ग्रन्थ मानसार में नगर की परिभाषा बताते हुए कथित है कि जहाँ पर क्रय-विक्रय होता हो, विभिन्न जातियों एवं परिवारों के व्यक्ति रहते हों, विभिन्न प्रकार के कर्मकार बसते हों, सभी धर्मावलम्बियों के धर्मायतन स्थित हों, वह नगर है ।२ ३. पत्तन : जैनसूत्रों में वर्णित है कि जहाँ नौकाओं द्वारा गमन होता है, उसे 'पट्टन' कहते हैं एवं जहाँ नौकाओं के अतिरिक्त गाड़ियों एवं घोड़ों से भी गमन होता है, उसे 'पत्तन' कहा गया है।' इसी प्रकार का विवरण जैन पुराणों में भी उपलब्ध होता है । जैन पुराणों के अनुसार जो समुद्र के तट पर स्थित हो और जहाँ नावों के द्वारा आवागमन हो, उसे 'पत्तन' कहते हैं। जैन साहित्य में इसे 'जलपट्टन' कथित है । जैनेतर ग्रन्थ अर्थशास्त्र में बन्दरगाह को 'पण्यपत्तन' वर्णित किया गया है। मानसार के अनुसार पत्तनं उस नगर को कहते हैं, जो समुद्र तट पर स्थित हो, जिसमें वणिक एवं विभिन्न जाति के लोग रहते हों, वस्तुएँ क्रय एवं विक्रय की जाती हों तथा वाणिज्य एवं व्यवसाय का बोलबाला हो और बाहरी देशों से क्रय-विक्रय के लिए लायी गयी सामग्री से परिपूर्ण हो । बृहत्कथाकोश में 'पत्तन' को 'रत्नसम्भूतिः' अर्थात् रत्नप्राप्ति का स्थान बताया गया है।' • ४. द्रोणमुख : जैन पुराणों में उस नगर को द्रोणमुख कथित है, जो किसी नदी के तट पर हो । महा पुराण के उल्लेखानुसार द्रोणमुख में चार सौ गाँव होते थे। द्रोणमुख उसे कहते थे, जहाँ जल और थल दोनों से आवागमन होता था, जैसे १. हरिवंश ८१४७-१४८ २. मानसार, अध्याय १० ३. पत्तनं शकटैर्गम्यं द्योटकैनाभिरेव च । नौभिरेव तु यद् गम्यं पट्टनं तत्प्रचक्षते ॥ व्यवहारसूत्र, भाग ३ ४. पत्तनं तत्समुद्रान्ते यन्नौभिरवतीर्यते । महा १६।१७२; पद्म ४१६५७; हरिवंश २।३; पाण्डव २।१६० ५. मोती चन्द्र-सार्थवाह, पटना, १६५३, पृ० १६३ ६. अर्थशास्त्र (शामा शास्त्री का अनुवाद), पृ० ३२८ ७. मानसार, अध्याय १०; मयमत १०१२८-२६ ८. बृहत्कथाकोश ६४।१६ ६. भवेद् द्रोणमुखं नाम्ना निम्नगातटमाश्रितम् । महा १६।१६३; पद्म ४१६५७; हरिवश २।३; पाण्डव २।१६० १०. महा १६।१७५; तुलनीय-चतुश्शतग्राम्या द्रोणमुखं । अर्थशास्त्र १७।१।३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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