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________________ २५० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन ताम्रलिप्ति और भरुकच्छ । जैन साहित्य से भी ज्ञात होता है कि यहां पर विदेशी दास-दासियों की भी बहुत माँग थी। मानसार में इसके लिए द्रोणान्तर शब्द व्यवहृत हुआ है । यह नगर समुद्र तट के पास नदी के मुहाने पर स्थित होता था, इसमें बनिये तथा अन्य जाति के लोग रहते थे और वस्तुओं का क्रय-विक्रय होता था ।२ कालान्तर के शिल्पशास्त्रों में भी इसी प्रकार का वर्णन समुपलब्ध है। ५. पुटभेदन : जैन पुराणों में बड़े-बड़े व्यापारिक केन्द्रों (नगरों) को पुटभेदन वर्णित किया है। बड़े नगरों में थोक माल की गाँठे मुहरबन्द आती थीं और मुहर तोड़कर माल को छोटे (फुटकर) व्यापारियों को बेच दिया जाता था। मुहरों के इस प्रकार तोड़ने से विशिष्ट व्यापारिक केन्द्र को पुटभेदन संज्ञा से सम्बोधित किया गया है । ऐसी मुहरें पुरातत्त्व की खुदाई से प्राप्त हुई हैं।" समराङ्गण-सूत्रधार में वर्णित है कि जहाँ बहुत से व्यापारी निवास करते हों और जो बन्दरगाह हो, उसे पुटभेदन कहते हैं। ६. खर्वट (कर्वट): खर्वट शब्द का शाब्दिक अर्थ जहाँ पर पति की अभिलाषा वाली बहुत-सी कन्याओं का अटन (भ्रमण) हो, उसे खर्वट कहते हैं।' समराङ्गण-सूत्रधार में इसे कर्वट वर्णित किया गया है और इसमें नगर-तत्त्व की प्रधानता का उल्लेख है। जैन पुराणों के अनुसार जो नगर पर्वत से घिरा हो उसे खर्वट कहते हैं । १. द्रोहिं गम्मति जलेण विथलेण वि द्रोणमुखं । जहा भरुयच्छं तामलित्ति एवमादि ॥ आचाराङ्गचूर्णि' पृ० २८२ द्रोष्यो नावो मुखमस्येति द्रोणमुखं जलस्थलनिर्गमप्रबेशम् यथा भगुकच्छं ताम्र लिप्तिर्वा-उत्तराध्ययन का शान्तिसूरिवृत्ति, पृष्ठ ६०५ २. मानसार, अध्याय १० ३. शिल्परत्न, अध्याय ५ ४. पद्म ४१६५७; हरिवंश २।३; तुलनीय-मिलिन्दपञ्हो, पृ० २; दीघनिकाय (द्वितीय भाग), पृ० ७२; अमरकोश, द्वितीय काण्ड, पृष्ठ ११६ ५. मोती चन्द्र-सार्थवाह, पृष्ठ १६; अमरकोश (हरदत्त शर्मा), पृ० ७४; भारत की मौलिक एकता, पृ० १२१ ६. समराङ्गण-सूत्रधार १८५ ७. विष्णु पुराण, अंश १, अध्याय ६ ८. 'कटं नगरोपमम्'-समराङ्गण-सूत्रधार, पृ० ८६ ६. केवलं गिरिसंरुद्धं खटं तत्प्रचक्षते । महा १६।१७१; हरिवंश २।३; पद्म ३।११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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