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( xxvi) समुदाय, विराम, सामान्याभिहित, समानार्थत्व, लेख)शुद्ध जाति एवं विकृत जाति; मात्रिकाएँ; मूर्च्छना; तान; राग; ताल; लय; अभिव्यक्ति, पद और अलंकार (स्थायी पद के अलंकार, संचारी पद के अलंकार, आरोही पद के अलंकार, अवरोही पद के अलंकार); श्रुतियाँ; ग्राम (षड्ज ग्राम, मध्यम ग्राम) २. संगीत-कला के भेद-भेदान्तर-गीत या गायन संगीत; वाद्य-संगीत : [१. तत वाद्य-स्वरगत गान्धर्व, पदगत गान्धर्व, तालगत गान्धर्व-तुणव, वीणा, अलाबु, तंत्री, सुघोषा; २. अवनद वाद्य-आनक, झल्लरी, ढक्का, दर्दुर, दुन्दुभि, पटह, पणव, पाणिघ (तबला), पुष्कर, भेरी, मृदंग, मुरज, मर्दल; ३. सुषिर वाद्य-कहला, तूर्य, वंश तथा बाँसुरी, वेणु, शंख, ४. घन वाद्य-घण्टा, ताल, कंसवादक (झांझ), झांझ-मंजीरा; ५. अन्य वाद्यअम्लातक, गुञ्जा, झर्झर, दुंदुकाणक, भंभा, मण्डुक, रटित, लम्प, लम्पाक, विपञ्ची (वैपञ्च), वेनासन, सुन्द, हक्का, हुंकार, हेतुगुजा, हैका]; नृत्य कला (विशेषताएं, नृत्य की मुद्राएँ, नृत्य के प्रकार एवं स्वरूप-आनन्द, अलातचक्र, अंगुष्ठ, इन्द्रजाल, कटाक्ष, चक्र, ताण्डव, निष्क्रमण, पुतली,
बहुरूपिणी, बाँस, लास्य, सामूहिक, सूची, नीलांजना । (ख) चित्रकला
३०६-३१० १. सामान्य परिचय; २. जैन चित्रकला : उद्भव और विकास; ३. चित्र-निर्माण के उपकरण; ४. वर्गीकरणगुहान्तर्गत भित्तिचित्र, चैत्यालयान्तर्गत भित्तिचित्र, ताड़पत्र चित्र, कर्गल चित्र, पटचिन, धूलिचित्र, फुटकर
ललित कला, काष्ठ चित्र, लौकिक चित्र; ५. विशेषताएँ । (ग) विविध ललित कला
३११-३१४ १. पत्रच्छेद कला-बुष्किम, छिन्न, अछिन्न; २. पुस्तकर्म कला-क्षयजन्य, उपचयजन्य, संक्रमजन्य, (यन्त्र, निर्यन्त्र, सश्छिद्र, निश्छिद्र); ३ परिधान कला, ४. संवाहन कलाकर्म सश्रया, कर्म संश्रया के दोष और शय्योपचारिका संवाहन;
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