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________________ ( xxvii ) ५. माला निर्माणकला-आई, शुष्क, तदुन्मुक्त, मिश्र; ६. गन्धयोजना कला-योनिद्रव्य, अधिष्ठान, रस, वीर्य, कल्पना, परिकर्म, गुणदोष, विज्ञान, तथा कौशल; ७. लेप्यकला। ७. आर्थिक व्यवस्था ३१५-३३३ (क) आर्थिक उपादान ३१५-३१६ १. आर्थिक समृद्धता; २. अर्थोपार्जन और धर्मानुकूलता; ३. श्रम-विभाजन; ४. ग्रामीण अर्थ-व्यवस्था । (ख) अजीविका के साधन ३२०-३२७ १. असि वृत्ति; २. मषि वृत्ति; ३. कृषि और पशुपालन; ४. शिल्प-कर्म; ५. व्यावसायिक वर्ग । (ग) व्यापार और वाणिज्य ३२८-३३३ १. महत्त्व एव प्रचलन; २. राष्ट्रीय व्यापार; ३. अन्त राष्ट्रीय व्यापार; ४. आयात-निर्यात; ५. मुद्रा; ६. माप प्रणाली-मेयमान, देशमान, कालमान, तुलामान । धार्मिक व्यवस्था ३३४-३६७ (क) दार्शनिक पक्ष ३३४-३६३ १. लोक-अधोलोक, मध्यलोक, ऊर्ध्वलोक । २. षड्द्रव्यद्रव्य का स्वरूप; द्रव्य के प्रकार-(अ) जीवद्रव्यजीव के नाम, जीव का स्वतन्त्र अस्तित्व, जीव का स्वतन्त्र महत्त्व, जीव और आत्मा, जीव : प्रकार एवं स्वरूप (संसारी जीव और उनके भेद, मुक्त या सिद्ध जीव, संसारी जीव की गतियाँ); (ब) अजीव द्रव्य-पुद्गल, परमाण, स्कन्ध, धर्म, अधर्म, आकाश, काल (काल के भेदव्यवहार काल और निश्चय काल) । ३. सप्ततत्त्व एवं नौ पदार्थ-तत्त्व का अर्थ, तत्त्व : प्रकार एवं स्वरूप-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा, मोक्ष एवं पाप और पुण्या; (स) आस्रव-जीवाधिकरण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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