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________________ २३४ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन इस अवसर पर शिष्य अपने गुरु को गुरुदक्षिणा भी प्रदान करता था।'. . ३. विद्या प्राप्ति का स्थान : आलोचित पुराणों के रचनाकाल में विद्याध्ययन मौखिक एवं लिखित दोनों प्रकार का होता था। छोटे बच्चों को खड़िया एवं मिट्टी के टुकड़े से वर्णमाला सिखायी जाती थी। जब बालक छोटा होता था तब उसका पिता ही उसका शिक्षक होता था। बालक को प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही उसका पिता प्रदान करता था।' यदि पिता योग्य होता था, तो आस-पास के बच्चे भी उसके पास चले आते थे। इसके बाद बालक विद्यालय जाता था। पद्म पुराण में उल्लिखित है कि राज्य की ओर से शिक्षा के लिए विद्याशाला (विद्यालय) होता था। इसके साथ ही वन में भी शिक्षण-स्थल के रूप में आश्रम होते थे, जहाँ पर विद्यार्थी विद्याध्ययन करते थे। विशिष्ट विद्वानों को राजा लोग अपने यहाँ रखते थे। पद्म पुराण में ही वर्णित है कि विद्यार्थी अध्ययनार्थ गुरु के घर जाते थे। हमारे जैन पुराणों के रचना-काल के अन्य साक्ष्यों से ज्ञात होता है कि उस समय आश्रम या गुरुकुल, विहार तथा मठ में शिक्षा का प्रबन्ध था। ४. गुरु का महत्त्व : आलोचित पद्म पुराण में विद्या देने वाले को गुरु', उपाध्याय", आचार्य", विद्वान्'२ यति" कथित है। पद्म पुराण में गुरु को सर्वाधिक महत्त्व दिया गया है। गुरु का सभी सम्मान करते थे, जिससे उसकी प्रतिष्ठा स्थापित थी। शिष्य के अभिभावक भी गुरु का आदर-सत्कार करते थे।" हरिवंश पुराण में गुरु की महत्ता प्रदर्शित करते हुए यहां तक कहा गया है कि यदि कोई एक अक्षर या आधा पद या एक पद का उपदेश देता है तो भी उसका महत्त्व गुरु के समान है और यदि कोई भी ऐसे गुरु को विस्मृत कर देता है, तो उसे पापी की संज्ञा दी जाती है । परन्तु यदि कोई धर्मोपदेशदाता को विस्मृत कर देता है तो ऐसे मनुष्य की निम्नतर गति होती है । महा पुराण में वर्णित है कि गुरु हृदय में रहता है, चूंकि वचन हृदय १. पद्म ३६।१६३; हरिवंश १७७६ २. वही २६७ ३. महा १६।११०, १६।११८ ४. पद्म ३६१६२ ५. वही ८।३३३-३३४ ६. वही ३६१६० ७. वही २६॥५-६ ८. ब्रज नाथ सिंह यादव-वही, पृ० ४०३ ६. पद्म २६६ १०. वही ३६।१६३ ११. वही २५५३ १२. पद्म ३६।१६० १३. वही ३६।३०३ १४. वही ६।२६२-२६४ १५. वही ३६११६३ १६. हरिवंश २१।१५६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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