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________________ शिक्षा और साहित्य . [i]. लिपि संस्कार : आलोचित जैन पुराणों के वर्णनानुसार जब बालक पाँच वर्ष का हो जाए तब उसका अक्षर ज्ञान कराया जाता था। इसके लिए लिपिक्रिया या संस्कार किया जाता था। लिपि संस्कार के बाद ही बच्चे को अक्षर तथा लिपि सिखायी जाती थी। महा पुराण में लिपि संस्कार के विषय में वर्णित है कि शिशु के जन्म के पाँचवें वर्ष में इस क्रिया को सम्पन्न करना चाहिए । इसकी विधि यह थी कि यथाशक्ति पूजन कर, सुवर्ण की पट्टी पर लिखने के पूर्व हृदय में, 'श्रुतदेवी' का स्मरण कर, दाहिने हाथ से शिशु को वर्णमाला (अ, आ आदि) तथा अंकों (इकाई, दहाई आदि) को लिखने का उपदेश देना चाहिए । 'सिद्धं नमः' से मंगलाचरण प्रारम्भ करते थे । यह 'सिद्ध-मात्रिका लिपि' थी, जिसमें स्वर, व्यञ्जन, समस्त विद्या, संयुक्ताक्षर, बीजाक्षर अकार से हकार तक, विसर्ग, अनुस्वार, जिह्वामूलीय, उपध्यानीय तथा शुद्धाक्षर होते थे। [i] उपनीति या उपनयन क्रिया : लिपि संस्कार के उपरान्त बालक घर पर ही व्रती गृहस्थ द्वारा अध्ययन करता था। जब वह आठवें वर्ष में प्रवेश करता था, तब उसका उपनीति या उपनयन संस्कार किया जाता था। इसमें केशमुण्डन, व्रतबन्धन तथा मौजीबन्धन क्रियाएँ होती थीं। बालक यज्ञोपवीत धारण करके भिक्षा माँगता था। इस क्रिया के बाद बालक को गुरु के पास शिक्षा-ग्रहण करने के लिए भेजा जाता था। बालक का विधिवत् अध्ययन कार्य इस क्रिया के उपरान्त प्रारम्भ होता था। fini] वतचर्या क्रिया : इस क्रिया का तात्पर्य विद्याध्ययन के समय संयमित एवं कठोर जीवन व्यतीत करने से है । इसके द्वारा विद्यार्थी अपना ध्यान एक मात्र विद्यार्जन की ओर केन्द्रित करता था। [iv] व्रतावतरण क्रिया : विद्यार्थी जीवन की समाप्ति पर विद्याध्ययन कर चुकने पर इस क्रिया को करते थे । इस क्रिया को समावर्तन संस्कार कह सकते हैं । इस क्रिया के बाद विद्यार्थी ब्रह्मचर्य आश्रम का परित्याग कर गृहस्थाश्रम में प्रवेश करते थे। इस क्रिया को आजकल प्रचलित 'दीक्षान्त' से समीकृत कर सकते हैं। १. महा १६।१०३-१०४, ३८।१०२-१०३ २. वही १६१०५ ३. वही १६।१०६-१०८ ४. वही ३८।१०४-१०६, ४०।१५६-१५८, ३६१६४-६५; हरिवंश ४२१५ ५. वही ३८।१०६-११२ ६. वही ३८।१२१-१२६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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