________________
शिक्षा और साहित्य
[क] शिक्षा
प्राच्य काल से मानव जीवन में शिक्षा का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है । अशिक्षित मनुष्य की गणना पशुवत् रही है । समाज में मर्यादित एवं प्रतिष्ठित जीवन के लिए मनुष्य का शिक्षित होना अनिवार्य है। मनुष्य का मानसिक, चारित्रिक एवं आध्यात्मिक विकास का माध्यम शिक्षा ही रहा है । शिक्षा द्वारा मनुष्य का बहुमुखी विकास हुआ है। अतः हमारे ऋषि-मुनियों ने शिक्षा का गुणगान किया है । इस प्रकार हम देखते हैं कि जैनाचार्यों ने भी शिक्षा को समाज के लिए महत्त्वपूर्ण माना है । यद्यपि आलोचित जैन पुराणों में शिक्षा से सम्बन्धित विस्तृत विवरण का अभाव है, तथापि उनके पर्यालोचन से जो तथ्य प्रकाश में आये हैं वे अनलिखित हैं :
१. शिक्षा का महत्त्व : जैन पुराणों में शिक्षा के महत्त्व पर विशेष बल दिया गया है। महा पुराण में विद्या के महत्त्व को प्रदिपादित करते हुए उल्लिखित है कि शरीर, अवस्था तथा शील विद्या से विभूषित हो जाने पर मनुष्य-जीवन सार्थक हो जाता है । इस संसार में विद्वान् पुरुष तथा विदुषी महिलाएं सम्मान एवं
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org