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जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन
समय राजनीतिक अव्यवस्था थी । अहिंसक होने पर भी जैनाचार्यों ने सैनिक वृत्ति को मनुष्य का पवित्र कर्त्तव्य माना था । उनके मतानुसार जो व्यक्ति युद्ध-स्थल में वीरगति को प्राप्त करते हैं, उन्हें स्वर्ग की उपलब्धि होती है । सामान्यतया युद्धोपरान्त शान्ति का आगमन होता है । भयावह स्थिति से मुक्ति पाने पर लोग सुव्यवस्था स्थापित करने का प्रयास करते थे । युद्ध में विजेता राजा विजयोत्सव का आयोजन करता था और पराजित राजा संसार की नश्वरता स्वीकारते हुए जिन - दीक्षा ग्रहण करता था । परन्तु कभी-कभी विजयी राजा ही जिन दीक्षा अंगीकार करता था । महा पुराण से प्रमाणित होता है कि बाहुबली और भरत ( सहोदर भ्राता) के मध्य जब युद्ध की भयावह स्थिति उत्पन्न हो गयी थी, तो दोनों पक्षों के मुख्य मंत्रियों ने नर-संहार के अवरोधनार्थ दोनों के मध्य 'धर्म- युद्ध' (जलयुद्ध, दृष्टियुद्ध तथा मल्लयुद्ध) का प्रस्ताव प्रस्तुत किया । इन तीनों युद्धों में बाहुबली को विजयश्री उपलब्ध हुई । सत्ता के लिए भरत हिंसा पर कटिबद्ध हुआ । बाहुबली पर उसने चक्र का प्रयोग किया । वह उससे घायल नहीं हुए पर उनके हृदय को आघात पहुँचा। उन्होंने सत्ता के लिए हिंसा के प्रतिरोध में अपना सर्वस्व त्याग दिया । जिन दीक्षा ग्रहण कर उन्होंने तपस्या द्वारा स्वर्ग प्राप्त किया । भरत - बाहुबली युद्ध, जैन राजनीतिक इतिहास में सत्ता के लिए संघर्ष और इसमें पराजय होने पर अनीति तथा हिंसा का आश्रय लेने की सर्वप्रथम घटना है ।"
उक्त प्रकरण से प्रमाणित होता है कि जैनी नर-संहार एवं हिंसा से मुक्ति के लिए विकल्प की व्यवस्था प्रतिपादित करते थे, जिससे हिंसा और युद्ध का निवारण होता था । युद्ध के अन्तिम परिणाम से संसार की नश्वरता का ज्ञान होने से मनुष्य जैन- दीक्षा में दीक्षित होता था ।
१. महा ४४।१३८
२ . वही ३६।३७-१०४
३. गोकुल चन्द्र जैन - जैन राजनीति, श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ, बम्बई,
उदयपुर, १६७६, पृ०
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