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________________ २१२ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन उपलब्ध होते हैं ।' जैनेतर साहित्य में भी उपर्युक्त तथ्य प्राप्य हैं ।' महा पुराण में दूत के तीन प्रकार-निःसृष्टार्थ दूत, मितार्थ दूत एवं शासनहारिण दूत-वर्णित हैं : निःसष्टार्थ दूत : उस दूत को कहते हैं जो दोनों पक्ष के अभिप्राय को ध्यान में रखकर स्वतः उत्तर-प्रत्युत्तर देता हुआ स्वकार्य सिद्ध करता है। इस प्रकार के दूत . में अमात्य के सभी गुण विद्यमान रहते थे। इस कोटि के दूत की गणना उत्तम कोटि में होती थी। मितार्थ दूत : यह मध्यम श्रेणी का दूत होता था। इसमें अमात्य का तीनचौथाई गुण होता था। शासनहारिण दूत : इसे निम्न श्रेणी का दूत माना जाता था। इसमें अमात्य के अधं गुण ही वर्तमान रहते थे। व्यक्तिगत जीवन में भी इसकी उपयोगिता थी। मुख्यतः इसका कार्य सन्देशवाहक का होता था। स्त्री-पुरुष दोनों ही दूत का कार्य करते थे। महा पुराण में इस प्रकार के पुरुष दूतों को कलह-प्रेमी' और स्त्री दूती को धात्री' की संज्ञा से सम्बोधित किया गया है। (xi) आरक्षी : महा पुराण में पुलिस कोतवाल के लिए आरक्षिण तथा तलवर' शब्दों का प्रयोग उपलब्ध है। उस काल में असामाजिक तत्त्व ही चोरी किया करते थे। उनके अवरोधनार्थ एवं सज्जनों के रक्षार्थ पुलिस-व्यवस्था स्थापित १. पद्म ६६८, ३७।४७, ६६३५१-५६ २. रामायण ५१५२।१४-१५; महाभारत शान्तिपर्व ८६।२५-२६; अर्थशास्त्र १।१६ ३. अत्रैकेषां निसृष्टार्थान् मितार्थानपरान् प्रति । परेषां प्राभृतान्तः स्थपनान् शासनहारिणः ॥ महा ४३।२०२ तुलनीय-याज्ञवल्क्य १।३२८; अर्थशास्त्र १११६; नीतिसार १३।३ ४. महा ४४।१३६ (टिप्पणी) ५. वही ५८।१०२ ६. वही ६६१६६ ७. वही ४६।२६१; तुलनीय-महाभारत सभापर्व ५१६४-६५; समराइच्चकहा २, पृ० १५५-१५६ . ८. वही ४६।३०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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