SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 245
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था २११ अत्यधिक क्रोधित हो जाया करते थे। इसी पुराण में ही राजाओं के पास बहुसंख्या में गुप्तचरों के होने का उल्लेख है ।२ जैन पुराणों में उल्लिखित है कि कार्य-सिद्धि पर उन्हें पुरस्कार, विशिष्ट शौर्य प्रदर्शन सम्बन्धी आयोजन द्वारा पुरष्कृत करने तथा दान आदि देने की व्यवस्था थी।' गुप्तचरों का कार्य सरल नहीं होता था। वे सदैव काल के गाल में रहते हैं। पाण्डव पुराण में वर्णित है कि कभी-कभी गुण्डों द्वारा गुप्तचरों की हत्या भी करा दी जाती थी। डॉ० अल्तेकर का मत है कि सेना के गुप्तचर पृथक् होते थे। (x) दूत : ऋग्वेद में दूत शब्द का उल्लेख उपलब्ध है। एक राज्य जिस व्यक्ति के माध्यम से दूसरे राज्य को राजनीतिक सन्देश भेजता है; उस व्यक्ति को दूत कहते हैं । जैन पुराणों में दूत के कार्य के विषय में वर्णित है कि राजा अपने विरोधी राज्य में दूत भेजते थे तथा वहाँ पहुँच कर नीति विषयक बात करते थे। दूत की योग्यता के विषय में उल्लिखित है कि उसे सन्धिविग्रह का ज्ञाता, शूरवीर, निर्लोभी, धर्म एवं अर्थ का ज्ञाता, प्राज्ञ , प्रगल्भ, वाक्पटु, तितिक्षु, द्विज, स्थविर तथा मनोहर आकृति का होना चाहिए। पद्म पुराण में उल्लिखित है कि दूत अन्य देश के राजा से वार्ता में अपने स्वामी के कथन के अतिरिक्त वह कुछ भी नहीं कहता था ।' महा पुराण के अनुसार वह राजा का पत्र मंजूषा (पिटारा) में ले जाता था ।° महा पुराण में ही मुहर तोड़कर पत्र पढ़ने का उल्लेख उपलब्ध है। पद्म पुराण में दूत को मारना नीति विरुद्ध बताया गया है, किन्तु उसको अत्यन्त कष्ट देने के भी अनेक दृष्टान्त १. चरोपनीततद्वार्ताज्वलनंज्वलिताशयः। महा ७४।१५६ २. महा ४५४१ ३. हरिवंश ३३१३-५; पाण्डव १८।८-६ ४. पाण्डव १२।११८ ५. अल्तेकर-वही, पृ० १४६ ६. ऋग्वेद १।१२।१, ८।४४१३ ७. महा ३५॥६२, ६८।४०८; पद्म १६.५५-५६ __ धान्य कुमार राजेश-वही, पृ० ६ ६. हृदयस्थाने नाथेन पिशाचेनेव चोदिताः । दूता वाचि प्रवर्तन्ते यन्त्रदेहा इवावशः ॥ पद्म ८।१८८ १०. महा ६८।२५१ ११. वही ६८।३६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy