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________________ २१० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन राजा लेखवाह की नियुक्ति पत्र ले जाने और ले आने के लिए करते थे। वह लेख (पत्र) को अपने मस्तक पर ले जाता था। इसी लिए हर्षचरित में इन्हें 'मस्तक लेखक' संज्ञा से सम्बोधित किया गया है। (viii) नगर-रक्षक : महा पुराण में नगर-रक्षक को ही पुर-रक्षक कहा गया है। वह सुरक्षा-व्यवस्था का प्रबन्ध करने के अतिरिक्त दण्डित व्यक्ति को श्मशानभूमि में फांसी देने का कार्य भी सम्पन्न करता था। (ix) गुप्तचर : गुप्तचर विषयक ज्ञान प्राचीन ग्रन्थों से उपलब्ध होता है। महाभारत में गुप्तचरों के लिए चार, प्रणिधि तथा गूढ़चर शब्द प्रयुक्त हुए हैं।' कौटिल्य ने गुप्तचरों की नियुक्ति के लिए नियम बनाये थे। गुप्तचरों की आधारपीठिका पर ही साम्राज्य में सुख-शान्ति स्थापित होती है। महा पुराण में गुप्तचरों को राजा का नेत्र और पद्म पुराण में अन्तरंग' कहा गया है । जिस प्रकार नेत्र केवल मुखमण्डल की शोभा है तथा सांसारिक पदार्थों को देखते हैं, उसी प्रकार गुप्तचर रहस्यपूर्ण बातों को ज्ञातकर शासन को सुदृढ़ करते हैं। महा पुराण में उल्लिखित है कि मंत्रीगण गुप्तचरों के माध्यम से सभी प्रकार की सूचनाएँ उपलब्ध कर उसी के अनुरूप राजा को मंत्रणा देते हैं, जिससे राज्य की सुदृढ़ता एवं सुरक्षा स्थापित रहे। हरिवंश पुराण में वर्णित है कि गुप्तचरी द्वारा अवांछनीय तत्त्व, जिसके षड्यन्त्रों से राज्य एवं समाज को क्षति पहुँचने की सम्भावना होती थी, उन्हें दण्डित कर कारागार में बन्द कर दिया जाता था। महा पुराण में स्पष्टतः उल्लिखित है कि गुप्तचरों द्वारा राज्य में भविष्य में घटित होने वाले अहितकर समाचारों को सुनकर राजा १. वासुदेव शरण अग्रवाल-वही, पृ० २१७ २. महा ६७११०० ३. प्रेमकुमारी दीक्षित-वही, पृ० २४०; व्यवहारभाष्य १, पृ० १३०; अर्थशास्त्र १।११-१४; कामन्दक १२।२५-२६; शुक्र १।३३४-३३६ ४. अर्थशास्त्र १।११ ५. महा ४।१७० ६. पद्म ३७४२६ ७. चक्षुश्चारो विचारश्च तस्यासीत्कार्यदर्शने । चक्षुषी पुनरस्यास्य मण्डने दृश्यदर्शने ॥ महा ४।१७० ८. महा ६२।१२१; तुलनीय-'चारचक्षुर्महीयते' । कामन्दक १२।१८ ६. हरिवंश १६।३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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