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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
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प्रारम्भिक चिकित्सा का ज्ञाता, वाहन विशेषज्ञ, दानी, मृदुभाषी, दान्त, बुद्धिमान्, दृढ़प्रतिज्ञ, शूरवीर आदि गुणों से आभूषित होना चाहिए ।"
(iv) श्रेष्ठि : महा पुराण के अनुसार श्रेष्ठि की नियुक्ति कोशाध्यक्ष पद के लिए की जाती थी । वह अमात्य, सेनापति, पुरोहित सहित राजा के साथ रहता था । महा पुराण में कोशागार के लिए 'श्रीगृह' शब्द प्रयुक्त हुआ है ।"
(v) धर्माधिकारी : महा पुराण में धर्माधिकारी ही न्याय व्यवस्था का राजा के बाद सर्वोच्च अधिकारी होता था । उक्त पुराण में ही इसके लिए 'अधिकृत " और हरिवंश पुराण में 'दण्डधर" शब्द का उल्लेख आया है । देश में निष्पक्ष तथा सुलभ न्याय की व्यवस्था का उत्तरदायित्व धर्माधिकारी पर ही था । जैनेतर ग्रन्थ गरुड़ पुराण में उल्लिखित है कि धर्माधिकारी को सम्पूर्ण स्मृतियों का ज्ञाता, पण्डित, संयमी, शौर्य तथा वीर्यवान् होना चाहिए ।"
(vi) लेखक : पद्म पुराण के अनुसार लेखक सन्धिविग्रह तथा सब लिपियों का मर्मज्ञ होता था । ' गरुड़ पुराण में उल्लिखित है कि लेखक को बुद्धिमान्, कुशलवक्ता, प्राज्ञ, सत्यवादी, संयमी, सभी शास्त्रों का पारंगत और सज्जन होना चाहिए ।"
(vii) लेखवाह (पत्रवाहक ) : पद्म पुराण में पत्रवाहक के लिए लेखवाह शब्द प्रयुक्त हुआ है ।" हर्षचरित" और राजतरंगिणी १२ में लेखवाह को लेखहारक वर्णित है ।
१.
अर्थशास्त्र २ । ३३; महाभारत शान्तिपर्व ८५।११-३२; मत्स्य पुराण २।५।८ - १०; कामन्दक २८।२७-४४: मानसोल्लास २।२।१०-१२
२.
महा ५७
३. वही ३७।८५
४.
वही ५७
५. वही ५६ । १५४
६. हरिवंश १६ । २५५
७.
८.
ई.
१०.
११.
१२.
गरुड़ पुराण १।११२६
पद्म ३७ ३-४; तुलनीय - महाभारत सभापर्व ५६२
मेधावी वाक्यपटुः प्राज्ञः सत्यवादी जितेन्द्रियः ।
सर्वशास्त्र समालोकी ह्येषसाधुः स लेखक: ।। गरुड़ पुराण १।११२।७ पद्म ३७/२
वासुदेव शरण अग्रवाल - हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १८० राजतरंगिणी ६।३१६
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