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________________ राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था २०६ प्रारम्भिक चिकित्सा का ज्ञाता, वाहन विशेषज्ञ, दानी, मृदुभाषी, दान्त, बुद्धिमान्, दृढ़प्रतिज्ञ, शूरवीर आदि गुणों से आभूषित होना चाहिए ।" (iv) श्रेष्ठि : महा पुराण के अनुसार श्रेष्ठि की नियुक्ति कोशाध्यक्ष पद के लिए की जाती थी । वह अमात्य, सेनापति, पुरोहित सहित राजा के साथ रहता था । महा पुराण में कोशागार के लिए 'श्रीगृह' शब्द प्रयुक्त हुआ है ।" (v) धर्माधिकारी : महा पुराण में धर्माधिकारी ही न्याय व्यवस्था का राजा के बाद सर्वोच्च अधिकारी होता था । उक्त पुराण में ही इसके लिए 'अधिकृत " और हरिवंश पुराण में 'दण्डधर" शब्द का उल्लेख आया है । देश में निष्पक्ष तथा सुलभ न्याय की व्यवस्था का उत्तरदायित्व धर्माधिकारी पर ही था । जैनेतर ग्रन्थ गरुड़ पुराण में उल्लिखित है कि धर्माधिकारी को सम्पूर्ण स्मृतियों का ज्ञाता, पण्डित, संयमी, शौर्य तथा वीर्यवान् होना चाहिए ।" (vi) लेखक : पद्म पुराण के अनुसार लेखक सन्धिविग्रह तथा सब लिपियों का मर्मज्ञ होता था । ' गरुड़ पुराण में उल्लिखित है कि लेखक को बुद्धिमान्, कुशलवक्ता, प्राज्ञ, सत्यवादी, संयमी, सभी शास्त्रों का पारंगत और सज्जन होना चाहिए ।" (vii) लेखवाह (पत्रवाहक ) : पद्म पुराण में पत्रवाहक के लिए लेखवाह शब्द प्रयुक्त हुआ है ।" हर्षचरित" और राजतरंगिणी १२ में लेखवाह को लेखहारक वर्णित है । १. अर्थशास्त्र २ । ३३; महाभारत शान्तिपर्व ८५।११-३२; मत्स्य पुराण २।५।८ - १०; कामन्दक २८।२७-४४: मानसोल्लास २।२।१०-१२ २. महा ५७ ३. वही ३७।८५ ४. वही ५७ ५. वही ५६ । १५४ ६. हरिवंश १६ । २५५ ७. ८. ई. १०. ११. १२. गरुड़ पुराण १।११२६ पद्म ३७ ३-४; तुलनीय - महाभारत सभापर्व ५६२ मेधावी वाक्यपटुः प्राज्ञः सत्यवादी जितेन्द्रियः । सर्वशास्त्र समालोकी ह्येषसाधुः स लेखक: ।। गरुड़ पुराण १।११२।७ पद्म ३७/२ वासुदेव शरण अग्रवाल - हर्षचरित : एक सांस्कृतिक अध्ययन, पृ० १८० राजतरंगिणी ६।३१६ १४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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