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________________ १६८ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन चाहिए । धर्मशास्त्र के अनुसार अर्थार्जन में अपनी प्रखर बुद्धि का उसे उपयोग करना चाहिए । अपने बाहुबल से अपने इष्टजनों एवं प्रजा की रक्षा करनी चाहिए । जो राजा इन छः अन्तरंग शत्रुओं-काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह एवं मत्सर्य-पर विजय कर अपनी वृत्ति का पालन करता हुआ स्वराज्य में स्थिर रहता है वह इहलोक एवं परलोक में समृद्धि को प्राप्त करता है। पद्म पुराण में उल्लिखित है कि राजा अपनी प्रजा का हित पिता सदृश्य करता है। जैनेतर आचार्यों ने राजा का प्रमुख कर्तव्य प्रजा-रक्षा माना है', किन्तु अग्नि पुराण में नौ, नारद स्मृति में पाँच तथा मनुस्मृति में आठ प्रकार के राजा के कर्तव्यों का उल्लेख उपलब्ध है। डॉ० बट कृष्ण घोष का मत है कि भारतीय राजनीतिशास्त्र में प्रजा का प्रभुत्व उसके व्यक्तिगत रूप में न मानकर शासकीय नियमों के संरक्षक के रूप में स्वीकार किया गया है । ६ राजा-प्रजा-सम्बन्ध : प्राचीन ग्रन्थों में राजा और प्रजा में सामाञ्जस्य स्थापित करते हुए राजा को प्रजा का सेवक स्वीकार्य किया है । प्रजा राजा को अपनी आय का छठांश कर के रूप में प्रदान करती थी, यही राजा की आय होती थी । इस प्रकार राजा को भृत्य की भाँति प्रजा की सेवा करने की व्यवस्था दी गयी है। आलोच्य जैन पुराणों में वर्णित है कि प्रजा राजा का अनुकरण करती थी। यदि राजा धर्मात्मा होता था तो प्रजा भी धर्मात्मा होती थी और राजा के अधामिक होने पर प्रजा भी अधार्मिक होती थी। इस प्रकार जैसा राजा वैसी प्रजा की कहावत चरितार्थ होती है। जैनेतर ग्रन्थों से भी उपर्युक्त मत का प्रतिपादन हुआ है कि प्रजा १. महा ३८।२७०-२८० २. पद्म २११५४ ३. विष्णुधर्मसूत्र ३।२-३; महाभारत शान्तिपर्व ६८।१-४; मनु ७११४४; वशिष्ठ १६। ७-८; रघुवंश १४।६७ ४. बी० बी० मिश्र-पॉलटी इन द अग्नि पुराण, कलकत्ता, १६६५, पृ० ३२ ५. बट कृष्ण घोष-वही, पृ० २७२ ६. बौधायनधर्मसूत्र १।१०-६; शुक्र ४।२।१३० यथा राजा तथा प्रजा । पद्म १०६।१५६ अनाचारे स्थिते तस्मिन् लोकस्तत्र प्रवर्तते । पद्म ५३।५; पाण्डव १७।२५६-२६० धर्मशीले महीपाले यान्ति तच्छीलता प्रजाः । अताच्छील्यमतच्छीले यथा राजा तथा प्रजा। महा ४११६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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