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________________ राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था के सुख में ही राजा का सुख था और प्रजा के हित में राजा का भी हित था। अतः राजा को अपना हित न देखकर प्रजा का हित देखने का निर्देश दिया गया है।' ___ महा पुराण में उल्लिखित है कि प्रजा राजा को ब्रह्मा मानकर समृद्धि प्राप्त करती थी।२ जैनेतर विष्णु पुराण में यह स्पष्टतः वर्णित है कि राजा निःस्वार्थ भाव से प्रजा की सुख-समृद्धि के लिए सचेष्ट रहता था। अतः प्रजा भी राजा को देवतुल्य समझती थी। ___महा पुराण में राजा द्वारा प्रजा के रक्षार्थ विभिन्न उपायों का निरूपण करते हुए वर्णित है कि राजा को अपनी प्रजा का पालन उस प्रकार करना चाहिए, जिस प्रकार आलस्य रहित होकर ग्वाला बड़े यत्न से अपनी गायों की रक्षा करता है, जिस प्रकार ग्वाला अपनी गाय को अंगछेद आदि का दण्ड नहीं देता, उसी प्रकार राजा को भी दण्ड देने में अपनी प्रजा के साथ न्यायोचित उदारता करनी चाहिए, इसके अतिरिक्त ग्वाले के समान राजा अपनी प्रजा के रक्षार्थ दवा देना, सेवा करना, आजीविका का प्रबन्ध करना, परीक्षा करके उच्चकुलीन पुत्रों को क्रय करना और अपने राज्य में कृषकों को बीज आदि प्रदानकर खेती कराना चाहिए। हरिवंश पुराण के अनुसार राजा को प्रजा के साथ पिता तुल्य व्यवहार करना चाहिए। राजा के पास स्वतः अंगरक्षक होते हैं । उक्त विचार जैनेतर ग्रन्थों में मिलता है। जैनेतर अग्नि पुराण में . ८ १. प्रजासुखे सुखं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम् । नात्मप्रियं हितं राज्ञः प्रजानां च हिते हितम् ॥ अर्थशास्त्र १।१६; महाभारत शान्तिपर्व ६६७२-७३ 2. प्रजाः प्रजापति मत्वा तमधन्त सुमेधसम् । महा ५४।११७ ३. सर्वानन्द पाठक-विष्णु पुराण का भारत, वाराणसी, १६६७, पृ० १३८ ४. महा ४२।१३६-१६८ ५. हरिवंश ७।१७६; तुलनीय-अशोक के अभिलेखों से ज्ञात होता है कि अशोक चौबीसों घण्टे प्रजा की भलाई में व्यस्त रहता था। इसी प्रकार अभिज्ञानशाकुन्तल के अनुसार राजा दुष्यन्त भी प्रजा की भलाई में तत्पर रहता था । यादव-वही, पृ० ११६ ६. पद्म २।२२१ ७. रामायण २।२।२८-४७; महाभारत शान्तिपर्व १३६।१०४-१०५; याज्ञवल्क्य १।३३४; रघुवंश १।२४; मार्कण्डेय पुराण १३०।३३-३४; हर्षचरित (५); गरुड़ पुराण १।१११११६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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