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(च) पुरुषार्थं
(छ) स्त्री-दशा
( xxi )
१. धर्म; २. अर्थ ; ३. काम; ४. मोक्ष; ५. पुरुषार्थ का
समन्वय ।
१०२ - १०५
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१. स्त्रियों की सामान्य स्थिति; २. स्त्रियों को संरक्षण; ३. स्त्रियों के गुण; ४. स्त्रियों के दुर्गुण; ५. विभिन्न रूपों में स्त्रियों की स्थिति — कन्या; पत्नी, माता, विधवा, वीराङ्गना, सेविका ( सामान्य धात्री, दासी, परिचारिका), वेश्या; ६. बहुपत्नी प्रथा; ७ पर्दा प्रथा; ८. पत्नी त्याग या तलाक प्रथा; ६. सती प्रथा ।
१०६ - १२६
(ज) भोजन - पान (आहार)
१. भोजन (आहार) के नियम-निर्देश; २. भोजन ( आहार ) के स्वरूप एवं प्रकार - भक्ष्य, भोज्य, पेय, लेय, चूष्य; ३. भोजन निर्माण कला - योनिद्रव्य, अधिष्ठान, रस, वीर्य, कल्पना, परिकर्म, गुण-दोष, कौशल; ४. निषिद्ध भोजन (आहार); ५. भोजन सामग्री या खाद्यान्न - नीवार, अक्षत, व्रीहि, तण्डुल, शालि, कलम, सामा, साठी, श्यामा कोदो ( कोद्रव), यव, गोधूम, राजमाष, आढ़की, मुद्ग, मसूर, तिल, माष, चना, निष्पाव, बरका, त्रिपुट, कुलित्थ, कङ्गव, अतस्य, सर्षप, कोशीपुट, शस्य; ६. तैयार भोजन सामग्री या पक्वान्न – अपूप, व्यञ्जन, महाकल्याण भोजन, अमृतगर्म मोदक, सूप, सर्पिगुड़पयोमिश्रशाल्योदन, अमृतकल्पखाद्य, पायस, शर्करामोदक, खण्डमोदक, कर्करा, पूरिका, गुड़पूर्णिकापूरिका, शष्कुली, घनबन्ध, अम्लिका ( कढ़ी ) ; ७. शाक निर्मित भोजन, ८. दूध निर्मित पदार्थ; ६. भोजन में प्रयुक्त अन्य पदार्थ ; १०. भोजनशाला में प्रयुक्त पात्र; ११. फलाहार; १२. पेय पदार्थ – सुरा, मैरेय, सीधु, अरिष्ट, आसव, नारिकेलासव, नारिकेलरस, अमृत, पुण्ड्रेक्षुरस, ईख का
रस ।
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