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________________ १८२ ___ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन जन्म प्रजा के दुःख एवं विपत्तियों के निवारणार्थ हुआ ।' इन कुलकरों का प्रजा से पितृवत् व्यवहार था। पुण्य-कर्मोदय से इनकी उत्पत्ति हुई और इन सभी की बुद्धि समान थी।२ महा पुराण में वर्णित है कि कर्मभूमि के पूर्व भोगभूमि में सज्जनों के रक्षार्थ दुष्टों को दण्ड देने की समस्या ही न थी क्योंकि समाज में अपराध का अभाव था। कालान्तर में कर्मभूमि में राजा के अभाव के कारण प्रजा में 'मात्स्य-न्याय' की प्रधानता थी। जिस प्रकार बड़ी मछलियाँ छोटी मछलियों को निगल जाती हैं, उसी प्रकार सबल व्यक्ति निर्बल को त्रस्त करने लगे थे। जैन पुराणों के समकालीन वसुबन्धु सदृश्य आचार्यों ने भी उक्त प्रकार का मत व्यक्त कर उपर्युक्त विचारधारा की पुष्टि करते हैं। यही नहीं जैनेतर ग्रन्थों में भी 'मात्स्य-न्याय' की सुन्दर विवेचना उपलब्ध है। २. राज्य के प्रकार : राज्य की उत्पत्ति के साथ ही तत्सम्बन्धित समस्याओं का भी प्रादुर्भाव हुआ। महा पुराण में उनके समाधानार्थ साधनों का निर्देश हैअन्वीक्षिकी, त्रयी, वार्ता तथा दण्ड । पद्म पुराण के अनुसार एक देश नाना जनपदों से व्याप्त होता है, जिसमें पतन, ग्राम, संवाह, मटम्ब, पुटभेदन, घोष तथा द्रोणमुख आदि आते हैं। १. महा ३१६३-१६३; हरिवंश ७।१२५-१७६; पद्म ३७५-८८ २. पद्म ३१७८-८८,हरिवंश ७११२३-१२७, ७।१४१-१५८ ३. दुष्टानां निग्रहः शिष्टप्रतिपालनमित्ययम् । न पुरासीत्क्रमो यस्मात् प्रजा: सर्वा निरागसः ॥ प्रजादण्डधराभावे मात्स्यं न्यायं श्रयन्त्यमूः । ग्रस्यतेऽन्तः प्रदुष्टेन निर्बलो हि बलीयसा ॥ महा १६०२५१-२५२ वट कृष्ण घोष-हिन्दू राजनीति में राष्ट्र की उत्पत्ति, प्रेमी अभिनन्दन ग्रन्थ, टीकमगढ़, १६४६, पृ० २६६ ५. शतपथब्राह्मण ११।६।२४; रामायण अयोध्या काण्ड ६७।३१; महाभारत, शान्तिपर्व १५।३०; अर्थशास्त्र ११४; मनु ७।१४; कामन्दक २।४०; मत्स्यपुराण २२५२६; मानसोल्लास २।१६ ६. महा ५११५ ७. देशो जनपदाकीर्णो विषयः सुन्दरो महान् ॥ पत्तनग्रामसंवाहमटम्बपुटभेदनः । घोषद्रोणमुखाद्य श्च सन्निवेशैविराजितः ॥ पम ४११५६-५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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