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राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था
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प्राचीन ग्रन्थों के परिशीलन से राज्यों के प्रकारों पर प्रकाश पड़ता है। कौटिल्य ने द्वैराज्य का उल्लेख किया ।' प्राचीन भारत में 'राज्य-संघ' का वर्णन उपलब्ध होता है। उदाहरणार्थ, यौधेय गणराज्य तीन गणराज्यों का संघ था। लिच्छवियों ने एक बार मल्लों तथा दूसरी बार विदेहों के साथ संघ बनाया था। कालिदास ने अपने ग्रन्थों में राज्य के प्रकारों का वर्णन किया है, जिसका विवरण निम्नवत् है-राज्य, माहाराज्य, आधिराज्य, द्वैराज्य, साम्राज्य तथा सार्वभौम (चक्रवर्ती राज्य)।
जैन ग्रन्थ आचारांगसूत्र में अनेक प्रकार के राज्यों का उल्लेख उपलब्ध होता है-यथा गणराज्य, द्विराज्य और वैराज्य ।' पद्म पुराण के अनुसार सामान्यतया एक राज्य का प्रचलन था, परन्तु कभी-कभी दो राजाओं द्वारा संयुक्ततः शासित देश का दृष्टान्त भी उपलब्ध होता है, जिसे महा पुराण में द्वैराज्य की संज्ञा प्रदान की गई है। निशीथचूर्णि में सात प्रकार के राज्यों का उल्लेख प्राप्य है-अनाराज्य (अराजक), जुवराज्य, वेरज्ज, विरुध-राज्य, दोरज्ज, गणरज्ज और रज्ज ।" किन्तु उपर्युक्त राज्य के सात प्रकारों में से वेरज्ज (वैराज्य), गणरज्ज (गणराज्य), दोरज्ज (द्वैराज्य) ही राज्य की कोटि में रखे जा सकते हैं और अन्य चार विशिष्ट तरह की राजनीतिक स्थितियों के सूचक हैं, न कि स्वतन्त्र राज्य के प्रकार हैं। १. कौटिल्य ८२ २. अल्तेकर-वही, पृ० ३२ ३. भगवत शरण उपाध्याय-कालिदास का भारत, भाग १, काशी, १६६३,
पृ० १८७ ४. आचारांगसूत्र १।३।१६० ५. पद्म १०६।६५; तुलनीय-मालविकाग्निमित्र, अंक ५, श्लोक १३ ६. महा ५२।३६ ७. मधुसेन-ए कल्चर स्टडी ऑफ द निशीथचूणि, अमृतसर, १६७५, पृ० १६
जैन आगमों में चार प्रकार के 'वैराज्य' का उल्लेख मिलता है :
(i) अणराज्य-राजा की मृत्यु हो जाने पर यदि अन्य राजा या युवराज का अभिषेक न हुआ हो तो उसे अणराज कहते हैं। (ii) जुवराज-पहले राजा द्वारा नियुक्त युवराज से अधिष्ठित राज्य, अभी तक अन्य युवराज अभिषिक्त न किया गया हो, को जुवराज कहा गया है। (ii) वेरज्जय या वैराज्य-अन्य राज्य की सेना ने जब राज्य को घेर लिया हो तो उसे वैराज्य की संज्ञा प्रदान की गयी है। (iv) वेरज्ज या द्वैराज्य-एक ही गोल के दो व्यक्तियों में कलह को वेरज्ज या वैराज्य सम्बोधित किया गया है । जगदीश चन्द्र जैन-वही, पृ० ३६८
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