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________________ राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था १८१ [क] राजनय : स्वरूप एवं सिद्धान्त १. राज्य की उत्पत्ति : राज्य के नियामक तत्त्वों में इसकी उत्पत्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन ग्रन्थों के परिशीलन से राज्य की उत्पत्ति पर प्रकाश पड़ता है । महाभारत और दीघनिकाय में सृष्टि के आदिकाल में स्वर्ण-युग की कल्पना का उल्लेख उपलब्ध है। यूनानी एवं फ्रांसीसी विद्वान् प्लेटो तथा रूसो ने भी आदिम काल में स्वर्णयुग की परिकल्पना की है। जैन पुराणों में भी सृष्टि के आरम्भ में स्वर्ण-युग का उल्लेख आया है। आदिकाल में राज्य का अविर्भाव नहीं हुआ था तथा प्रजा पूर्णतः सुखी थी। कल्पवृक्षों द्वारा व्यवस्था नियन्त्रित होती थी। कालान्तर में माँग की आपूर्ति पूर्णतः न होने से व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न हो गया था। इसके निवारणार्थ योनिज-पुरुष (कुलकर) उत्पन्न हुए और मनुष्यों ने इनसे उभयपक्षीय समझौता किया । जैन पुराणों में राज्य की उत्पत्ति विषयक सिद्धान्तों में सामाजिक समझौतों पर अधिक बल दिया गया है। राज्य दैवी संस्था न होकर मानवीय संस्था थी। इसका निर्माण प्राकतिक अवस्था में रहने वाले व्यक्तियों द्वारा पारस्परिक समझौते के आधार पर हुआ है। आदिकाल में यौगलिक व्यवस्था थी। एक युगल जन्म लेता और वही युगल अन्य युगल को जन्म देने के बाद समाप्त हो जाता था। इस प्रकार के अनेक युगल थे ।' कालान्तर में प्रकृति में परिवर्तन से प्राकृतिक साधनों का ह्रास होने के कारण राजनीतिक समाज की स्थापना हुई। समय-समय पर चौदह कुलकरों का १. ए० एस० अल्तेकर-प्राचीन भारतीय शासन पद्धति, इलाहाबाद, सं० २०३३, पृ० १६ २. धन्य कुमार राजेश-जैन पौराणिक साहित्य में राजनीति, श्रमण, वर्ष २३, अंक १, नवम्बर १६७३, पृ० ३-४; गोकुल चन्द्र जैन-जैन राजनीति, श्री पुष्कर मुनि अभिनन्दन ग्रन्थ, बम्बई, उदयपुर, १६७६, पृ० २७ पद्म ३।३०-८८, ३।२३८-२४१; हरिवंश ८।१०६-१७०; महा ३।२२-१६३, तुलनीय-नैवराज्यं न राजासीत् न दण्डो न च दाण्डिकः । धर्मेणैव प्रजाः सर्वा रक्षन्ति च परस्परम् ॥ महाभारत, शान्तिपर्व, ५६।१४ ४. अथ कालान्त्यतो हानि तेषु यातेष्वनुक्रमात् । कल्पपादपखण्डेषु श्रृणु कोलकरी स्थितिम् ॥ पद्म ३।७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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