SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 214
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था जैन पुराणों में राजनय एवं राजनीतिक व्यवस्था से सम्बन्धित जो सामग्री उपलब्ध होती है, उसके स्वरूप का प्रतिबिम्बन मुख्यतया दो पक्षों पर हुआ है : प्रथम पक्ष का सम्बन्ध उन सैद्धान्तिक आदर्शों से है, जिसका निर्माण प्राक्युगीन परम्पराओं में हुआ था। द्वितीय पक्ष समकालीन राजनीतिक संस्थाओं एवं राजनय विषयक व्यवस्थाओं की ओर केन्द्रित है। इनके निर्माण-काल में धर्मशास्त्र और अर्थशास्त्र परम्परा के सैद्धान्तिक विवेचनों में नीति-साहित्य का आविर्भाव हो चुका था तथा प्रशासकीय तत्त्वों पर मात्र आंशिक रूप में, किन्तु सैनिक एवं कूटनीति तत्त्वों पर पूर्णतः बल दिया जाने लगा था । तत्कालीन नीति-साहित्य में कामन्दकीय नीतिशास्त्र का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसके समस्तरीय एवं समकालीन अन्य नीतिशास्त्रों की समीक्षा के आधार पर यह सर्वसम्मत से निर्धारित हो चुका है कि राजनय विषयक कुछ विवेचनीय तत्त्व, उदाहरणार्थ-'अध्यक्ष-प्रचार' एवं 'धर्मस्थीयम्' जैसे अर्थशास्त्र के सुविदित खण्ड अतीत के विषय बन चुके थे । नीतिशास्त्र विषयक संकलित स्वतन्त्र रचनाओं के अतिरिक्त नीति सम्बन्धी सन्दर्भो का समावेश करने वाले समकालीन पारम्परिक पुराणों के राजनीतिपरक खण्डों में भी उक्त स्थिति का निदर्शन उपलब्ध होता है। ऐसी विशेष परिस्थिति के कारण जैन पुराणों के तत्सम्बन्धी स्थलों को अर्थशास्त्र, धर्मशास्त्र तथा नीतिशास्त्र से विदित होने वाले राजनीतिक व्यवस्था के बृहत्तर सन्दर्भ में समीक्षा का विषय बनाना आवश्यक हो जाता है। इस मापदण्ड को दृष्टि में रखते हुए प्रस्तुत अध्याय का विवेचन निम्नोद्धृत अनुच्छेदों में किया जाना उचित प्रतीत होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy