________________
१६६
जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन स्पष्ट ज्ञात होता है कि सफेद बाल को खिजाब द्वारा काला करने की परम्परा महा पुराण के रचना-काल में प्रचलित थी।
(ii) अलक-जाल : महा पुराण में सालकानन शब्द प्रयुक्त हुआ है, जिसकी व्युत्पत्ति स + अलक+आनन होती है अर्थात् चूर्णकुन्तल (सुगन्धित चूर्ण लगाने योग्य आगे के बाल या जुल्फें सहित मुख)।' अलकावली (घुघराले बाल) बनाने के लिए विशेष प्रकार के चूर्ण की आवश्यकता पड़ती थी।२ पिष्टात या पिष्टातक, कुंकुम आदि सुगन्धित द्रव्यों को पीसकर इस चूर्ण को निर्मित किया जाता था। केरल की स्त्रियाँ अलकों में चूर्ण का प्रयोग करती थीं। वाराणसी में राजघाट से प्राप्त मिट्टी के खिलौनों में केश-विन्यास, कुन्तलकलाप एवं अलक-जाल के अनेक प्रकार के उदाहरण द्रष्टव्य हैं। उदाहरणार्थ शुद्ध पूंघर, चटुलेदार चूंघर, छतरीदार बूंघर एवं पटियादार धूंधर ।' मानसार में कुन्तल केश प्रसाधन का अंकन लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्ति के मस्तक पर उपलब्ध है।
(iii) धम्मिलविन्यास : नीचे की ओर कुछ लटके, कोमल और कुटिल केशपाश को धम्मिल कहते हैं । अमरकोश में मौलिवद्ध केश-रचना को धम्मिल्ल (धम्मिल) कथित है। इस प्रकार संयमित पुरुष के केश को मौलि तथा स्त्री के केश को धम्मिल की श्रेणी में रखते हैं। वाराणसी में राजघाट से प्राप्त खिलौनों में धम्मिल-विन्यास के अनेक प्रकार उपलब्ध हैं।
(iv) कबरी" : बालों के विशेष प्रकार से सँभालकर बाँधने के ढंग को कबरी कहते हैं। कबरी प्रकार के केशविन्यास में पुष्प-मालाएँ धारण करने की प्रथा १. महा १२।२२१ २. अमरकोश २।६।६६ ३. वही २।६।१३६ ४. रघुवंश ४।५४ ५. वासुदेव शरण अग्रवाल-राजघाट के खिलौनों का एक अध्ययन, कला
और संस्कृति, पृ० २४६-२४६
जे० एन० बनर्जी-दी डेवलपमेण्ट ऑफ हिन्दू आइकोनोग्राफी, पृ० ३१४ ७. महा ६८० ८. अथ धम्मिलः संयताः कचाः । अमरकोश २।६।६७ # शिवराम मूर्ति-अमरावती, पृ० १०६ १०. वासुदेव शरण अग्रवाल-वही, पृ० २५१ ११. महा १२।४१, ३७११०८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org