SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 199
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामाजिक व्यवस्था १६५ (vii) कपूर' : शरीर को सुगन्धित एवं सौन्दर्य के अभिवृद्धि हेतु कपूर का उपयोग विविध प्रकार से किया जाता था। (viii) चन्दन : समाज में चन्दन का प्रयोग विविध भाँति से होता था। अतः स्त्री-पुरुष दोनों ही चन्दन का उपयोग करते थे। चन्दन में कस्तूरी, प्रियंगु, कुंकुम एवं हल्दी को मिश्रित करके लेप तैयार किया जाता था। इसके प्रयोग से शारीरिक सौन्दर्य एवं कान्ति द्विगुणित हो जाती थी। (ix) कुंकुम : शारीरिक स्वास्थ्य, सौन्दर्य एवं सुगन्धि के लिए कुंकुम (दसर) का प्रयोग स्त्री-पुरुष दोनों किया करते थे। (x) आलक्तक* : स्त्रियाँ अपने पैरों की सुन्दरता में अभिवृद्धि के लिए आलक्तक (आलता) या लाक्षारस' का प्रयोग करती थीं। वस्तुतः आलक्तक और लाक्षारस एक प्रकार का महावर है। इसका प्रयोग आधुनिक युग में भी प्रचलित है । (xi) सुगन्धितचूर्ण' : आजकल के पाउडर के तुल्य उस समय सुगन्धित चूर्ण का उपयोग किया जाता था। २. केश-प्रसाधन : जैन पुराणों में केशों का प्रसाधन कई प्रकार से किया जाता था, जिससे स्त्री-पुरुष अपनी सुन्दरता को प्रदर्शित कर सकें। (i) केश-विन्यास : केशों के लिए जैन पुराणों में कुन्तल, केश, अलक, कबरी आदि शब्दों का प्रयोग उपलब्ध है। सुगन्धित जल से स्नानोपरान्त केश को धूप के सुगन्धित धुएँ में सुखाया जाता था, तदुपरान्त तेल आदि द्वारा केशों को संवार कर बाँधा जाता था। केश-प्रसाधन में पुष्प-माला, विभिन्न प्रकार के पुष्प, पुष्पपराग, पल्लव, मंजरी, एवं सिन्दूर आदि का प्रयोग किया जाता था। महाकवि कालिदास ने अपने रघुवंश महाकाव्य में धूप से सुगन्धित केश को 'धूपवास" और धूपित केश को 'आश्यान' वर्णित किया है। केश को सुगन्धित करने की विधि के लिए मेघदूत में 'केश-संस्कार' शब्द प्रयुक्त हुआ है । महा पुराण में वर्णित है कि सफेद बाल वाले' लोग बालों में हरिद्रार ( खिजाब ) लगाते थे।" महा पुराण के अध्ययन से १. महा ३१६६१ ७. महा १२१५३, १५६० २. वही ६।११ ८. रघुवंश १६५० ३. वही १३।१७८ ६ वही १७।२२ ४. वही ७।१३३ १०. मेघदूत १।३२ ५. वही ७१४५ ११. महा २७११२० ६. वही १४८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy