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________________ सामाजिक व्यवस्था १६७ थी। चोटी के ढीली होने पर पुष्प-मालाओं के गिरने का उल्लेख जैन पुराणों में उपलब्ध है। ३. पुष्प-प्रसाधन : सौन्दर्य अभिवृद्धि के लिए स्त्री-पुरुष द्वारा पुष्पों का विभिन्न प्रकार से प्रसाधन के रूप में प्रयोग करने का उल्लेख जैन पुराणों में आया है। विविध भाँति के पुष्पों एवं उनके पल्लवों से निर्मित आभूषणों का प्रचलन प्राचीन काल में था। दक्षिण भारत में पुष्प-प्रसाधन की प्राचीन कला अपने अभिनव रूप में आज भी स्त्रियों में प्रचलित है। (i) पुष्प-माला : सम्पन्न एवं निर्धन सभी स्त्री-पुरुष हर्षोल्लास एवं उत्सव के अवसर पर गले में पुष्पमाला धारण करते थे। पुष्पमालाओं को केशों, बाहों तथा हाथों में आभूषण की भाँति धारण किया करते थे। (ii) आम्रमञ्जरी' : प्राचीन काल में वसन्त ऋतु में स्त्री-पुरुष आम्रमञ्जरी का प्रयोग विशेषतः किया करते थे। आम्रमजरी कामोद्दीपन में सहायक माना गया है। (iii) पुष्षमञ्जरी : विहार काल में नायक-नायिकाएँ पुष्पमञ्जरी का अधिकांशतः उपयोग करते थे। इनका प्रयोग वे विविध भाँति से करते थे। (iv) कर्णोत्पल" : कानों में पुष्प एवं पत्तों से निर्मित विविध प्रकार के कर्णाभूषण धारण किया करते थे। उस समय नीलोत्पल (कमल) को कान में पहनने की प्रथा प्रचलित थी। १. महा १२।५३; तुलनीय-कबरी केशवेशः । अमरकोश २।६।६७ २. वही १७११६७, १६।२३४; हरिवंश ३१।३ ३. वही ॥२८८ ४. वही ११८ ५. वही १५२८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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