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सामाजिक व्यवस्था
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१२. पेय पदार्थ : अन्नाहार और फलाहार के अतिरिक्त कुछ पेय पदार्थ भी आहार के रूप में प्रयोग में आते थे। जैन पुराणों में भी विभिन्न पेय पदार्थों का विवरण निम्नांकित है :
(i) सुरा' : इसका अन्य नाम मदिरा भी है। प्राचीन काल में भारतीय समाज में मदिरा का प्रचलन था । स्त्री-पुरुष दोनों ही इसका सेवन करते थे।
(ii) मैरेयर : यह सुवासित एवं अधिक मादकता उत्पन्न करने वाली मदिरा होती थी।
(ii) सीधु' : यह राब या गुड़ से निर्मित मदिरा है। इसकी गणना उत्तम प्रकार की मदिराओं में होती थी।
(iv) अरिष्ट' : यह द्राक्षा, गुड़ एवं जड़ी-बूटियों द्वारा निर्मित मदिरा है। इसमें मादकता नहीं होती थी।
(v) आसव' : चावल, द्राक्षा, गुड़ आदि को सड़ाकर आसव निर्मित करते थे। यह स्वास्थ्यवर्धक होता था।
(vi) नारिकेलासव' : नारियल से बनी हुई मदिरा को नारिकेलासव कहते हैं । यह मदिरा अन्य मदिराओं से अत्यधिक मादक होती थी।
(vii) नारिकेलरस' : नारियल के रस को नारिकेल रस कहते हैं। इसके रसपान का उल्लेख उपलब्ध है।
(vill) अमृत : रसायन के समान रसीले पदार्थ को अमृत कहते थे । यह एक प्रकार का पेय पदार्थ होता था।
(ix) पुण्ड्रेक्षुरस' : पौंडा (पुण्ड) नामक गन्ने के रस को पुण्ड्रेक्षुरस कहते हैं । यह बंगाल में उत्पन्न होता है ।
(x) ईख का रस : इक्षु का रस छः रसों से युक्त था। पहले यह स्वतः निकलता था। बाद में यन्त्र से पेरकर निकालते थे।
१. महा ३६।८७ २. वही ६।३७ ३. वही ६।३७ ४. वही ६१३७ ५. वही ६।३७
६. महा ३०।२५ ७. वही ३०।२० ८. महा ३७११८६ ६. वही २०११०१, २।४ १०. पद्म ३।२३३-२३४
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