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________________ १४२ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन प्राचीन काल में मद्य-पान का प्रचलन था। समृद्ध एवं सामान्य परिवार में इसे विलासिता का मापदण्ड माना गया है।' हरिवंश पुराण में पिण्ट, किण्व आदि मद्य निर्माण के साधनों का उल्लेख उपलब्ध है ।२ बृहत्कल्पभाष्य में मद्य को स्वास्थ्य तथा दीप्ति का कारण माना गया है। जैन सूत्रों में चन्द्रप्रभा, मणिशल्यका, वरसीधु, वरवारुणी, आसव, मेरक; मधु, रिष्टाभ, जम्बूफल कलिका, दुग्धजाति, प्रसन्ना, तल्लक, शतायु, खजूरसार, मृद्वीकासार, कापिशायन, सुपक्व और इक्षुसार नामक मदिराओं का वर्णन उपलब्ध है ।' मद्य का उपयोग विवाह, उत्सव एवं कामशालाओं में होता था। वेश्याओं के यहाँ मद्य का विशेषतया प्रयोग होता था। पद्म पुराण में अपनी पत्नी के साथ मद्यपान करके. आनन्द मनाने का वर्णन प्राप्य है। अखण्ड मद्यपान कर पत्नी के दोहलापूर्ण करने का दृष्टान्त मिलता है। मद्यप की मद्यपान की अवस्था का सुन्दर चित्रण जैन ग्रन्थों में उल्लिखित है। मद्यप (शराबी) असम्बद्ध गीत गाते, लड़खड़ाते पैरों से नृत्य करते थे, केश बिखरे रहते थे, आभूषण अस्त-व्यस्त रहते थे। कण्ठों में जंगली पुष्पों की माला धारण करते थे। नेत्र इधर-उधर घुमाते थे। अधिकांश व्यक्ति मदिरा का सेवन नहीं करते थे। महा पुराण में वर्णित है कि विरहणी स्त्रियाँ कामाग्नि की जलन को मद्य का जलन समझकर मदिरा का परित्याग कर देती थीं। इसी प्रकार प्रेमिकाएँ अपने प्रेम की सार्थकता सिद्ध करने के लिए श्राविकाओं की भाँति मद्य का दूर से ही त्याग करती थीं। आर्य-पुरुषों को मद्यपान का निषेध किया गया है। १. रामायण २।६११५१; अर्थशास्त्र २।२५।४२-३६; महाभारत, आदिपर्व १७७।१०; धम्मपद अट्ठकथा ३, पृ० १००; सुरापानजातक १, पृ० ४७१ ।। २. हरिवंश ६१।३५; तुलनीय-जगदीश चन्द्र जैन-वही, पृ० १६८-१६६ बृहत्कल्पभाष्य ५६५३५ जगदीश चन्द्र जैन-वही, पृ० १६६-२०० बृहत्कल्पभाष्य ३१११६ पद्म ७३।१३६; वही १४।२१ बृहत्कल्पभाष्य १४१५ वही ६११५१-५३ ६. महा ४४।२८८ १०. वही ४४।२६०; तुलनीय-कल्पसूत्र ६१७, निशीथचूर्णी पीठिका १३१ ११. वही ११३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only, www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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