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सामाजिक व्यवस्था
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(लौंग), ताम्बूल', एलारे (इलायची), पीथ' (दूध सहित मक्खन) की चर्चा जैन पुराणों में वर्णित है।
१०. भोजनशाला में प्रयुक्त पात्र : भोजन-पात्र स्वर्ण, चाँदी, ताम्र, कमलदल, पलाशदल का होता था। लोहे एवं मिट्टी के पात्र में भोजन करने का निषेध है ।" जैन पुराणों के अनुसार निम्नलिखित पात्र प्रयुक्त होते थे :
___ पिठर' (बटलोई या मटका), स्थाली (थाली), चषक (प्याला या कटोरा), सूर्प' (अनाज से कूड़ा-करकट साफ करने का पात्र), कलश° (जल भरने का घड़ा), भृगार" (झारी या सागर), घट'२ (घड़ा), उष्ट्रिका (कटाह, कड़ाहा, कड़ाही), पार्थिवघट (मिट्टी का घड़ा), करक५ (करवा); स्वर्ण कुम्भ६, वरना (मजबूत रस्सी), शुक्ति आकृतिपात्र (विशिष्ट पात्र), कुण्ड" (पत्थर का कठौता)। इसके अतिरिक्त मिट्टी, बाँस तथा पलाश के पत्तों से सब प्रकार के बर्तन तथा उपयोगी सामान निर्मित होते थे । २० स्थाली२१ (हण्ड) (भोजन बनाने का विशाल पात्र) का उल्लेख है । भोजन निर्माता हेतु सूपकार २२ शब्द व्यवहृत है। कर्करिका२३ १. महा ५।१२६, २६६१; हरिवंश ३६३२८ २. वही २६६६-१००; पद्म ४२।१६; हरिवंश ३६।२८ ३. वही २७।२६ ४. व्यास ३।६७-६८ ५. हारीत, स्मृतिचन्द्रिका १, पृ० २२२ में उद्धृत ६. पद्म ३३।१८०; महा ७२ ७. वही १२०।२१, ५३।१३४; महा ३।२०४, ६।४७; हरिवंश ७।८६ ८. वही ७३।१३७; महा ६।४७; हरिवंश ७।८६ ६. वही ३३।१८० १०. वही ८८।३०, १२०।२४; महा १३।११६ ११. वही ६४७
१८. वही ६४७ १२. वही ३३।१८०
१६. वही २६।४६ १३. महा १०१४४
२०. पद्म ४१।११ १४. वही ३५॥१२६
२१. महा ३७.६७ १५. वही ६।४७
२२. वही ६५।१५६, ७१।२७१ १६. वही ४३।२१०
२३. हरिवंश १५।११ १७. वही ३५।१४६
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